मुझ ‘रस’को, मेरे ‘रस' के -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्री कृष्ण के प्रेमोद्गार

Prev.png
राग भीमपलासी - ताल कहरवा


मुझ ‘रस’को, मेरे ‘रस के जीवन’ को अपने ‘रस’ से भरकर।
सरस किया, माधुर्य भर दिया, हु‌आ पूर्ण से परम पूर्णतर॥
‘रस’ में जगी पिपासा ‘रस’ की नित्य बढ़ रही उत्तरोत्तर।
इस ‘विशेष सुख’ की इच्छा करता नित ‘सच्चित्‌‌-सुख निरीह वर’॥

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः