मुझ अबला ने मोटी नीरांत थई -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विश्वास





मुझ अबला ने मोटी नीरांत थई,
सामलो घरेनु म्हांरे सांचु रे ।।टेक।।
बाली बड़ाऊं बीठल बर केरी, हार हरी ने म्हांरो हइये, रे ।
चीन माल चतुरभुज चुड़लो, सिद सोनी घरे जइये, रे ।
झांझरिया जगजीवन केरा, कि‍स्मे गलांरी कंठी, रे ।
बिछुवा घुंघरा रामनरायण, अनवट अंतरजामी, रे ।
पेटी घड़ाउं पुरुसोत्तम केरी, टीकम नाम नूं तालो, रे ।
कूँची कराऊँ करुनानँद केरी, ते मा घैणा नूं मारूँ, रे ।
सासर वासो सजी ने बैठी, हवे नथी काइ कांचूँ, रे ।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, हरिनूं चरणे जाचूं, रे ।।139।।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अबला ने = अबला व असहाय स्त्री को। मोटी, पूरी बड़ी। नीराँत = भरोसा। थई = हुआ। सामलो = श्यामसुन्दर। घरेनु = घर पर। साँचु = पधारा, आया। बड़ाऊँ = कान की बालियाँ गढ़वाऊँ। बीठल वर = विट्ठलरूपी वर वा पति। हाइये = हैही। चीन = चिंतामणि ( ? ) चुड़लो =चूड़ा। सिद सोनी = सिद्ध सोनार। जाइसे = जाकर। झांझरिया = झांझन नाम पैर का गहना। ( देखो - झांझरियाँ झनकैंगी खरी तरकैगी तनी तनकौ तन तौरें- देव )। किस्न = कृष्ण। गलाँरी = गले की। बिछुवा = एक पैर का गहना। घुंघरा = घुंघरू, मंजीर। अनवट = पग्र के अँगूठे का छल्ला। पेटी = कमरबन्द। घड़ाऊँ = गढ़वाऊँ। टीकम = त्रिविक्रम। नामनूँ = नाम की। कूँची = कुंजी। घैणानु = गहनों को। मारूँ = बन्द कर दूँ। सासर वासो = ससुराल में, प्रियतम के घर। सजीने = सजधज कर। हवे = अब। नथी = नहीं है। काँचू = चोली। काई = कोई। सजीने = सजकर।
    विशेष- हरिनाम का स्मरण करते-करते मीराँ को पूर्ण भरोसा होने लगा कि अब प्रियतम श्रीकृष्ण ने मुझे पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया है और इसी भाव को उन्होंने, जान पड़ता है, इस पद में रूपक द्वारा दर्शाने की चेष्टा की है।

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