महा बिरह-बन-माँझ परी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिहागरौ


महा बिरह-बन-माँझ परी।
चकित भइ ज्यौ चित्रपूतरी, हरिमारग बिसरी।।
सँग वटपारगर्व जब देख्यौ, साथी छोड़ि पराने।
स्याम-सहर-अँग-अंग-माधुरी, तहँ वै जाइ लुकाने।।
यह बन साँझ अकेली ब्याकुल, संपति गर्व छँड़ायौ।
'सूर' स्याम सुधि टरति न उर तै, यह मनु जीव बचायौ।।2078।।

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