महारास

गोपियों संग रास रचाते श्रीकृष्ण

महारास भगवान श्रीकृष्ण से सम्बंधित है। चैत्र मास की पूर्णिमा को 'चैते पूनम' भी कहा जाता है। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज में उत्सव रचाया था, जिसे 'महारास' के नाम से जाना जाता है। यह महारास कार्तिक की पूर्णिमा को शुरू होकर चैत्र की पूर्णिमा को समाप्त हुआ था।

  • मथुरा के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल वृन्दावन में स्थित निधिवन को वह स्थान माना जाता है, जहाँ श्रीकृष्ण ने एक साथ कई गोपियों संग रास रचाकर 'महारास' किया।
  • सोलह कलाओं से परिपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण का अवतार मुख्यत: आनंद प्रधान माना जाता है। उनके आनंद भाव का पूर्ण विकास उनकी मधुर रस लीला में हुआ है। यह मधुर रस लीला उनकी दिव्य रास क्रीड़ा है, जो श्रृंगार और रस से पूर्ण होते हुए भी इस स्थूल जगत के प्रेम व वासना से मुक्त है।
  • इस रासलीला में वे अपने अंतरंग विशुद्ध भक्तों[1] के साथ शरत् की रात्रियों में विलास करते हैं।
  • कृष्ण की इस रासलीला में दो धाराएं हैं, जो दोनों ओर से आती हैं और एकाकार हो जाती हैं। हर क्षण नया मिलन, नया रूप, नया रस और नई तृप्ति- यही प्रेम-रस का अद्वैत स्वरूप है और इसी का नाम 'रास' है।



टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जो उनकी निज रसरूपा राधा की सोलह हजार कायरूपा गोपियां हैं।

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