महाराज दसरथ यौं सोचत -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग कान्‍हरौ
कैकेयी-बचन, श्रीराम के प्रति


  
महाराज दसरथ यौं सोचत ।
हा रघुनाथ, लछन, बैदेही सुमिरि नीर दृग मोचत।
त्रिया-चरित मतिमंद न समझत, उठि प्रछालि मुख धोवत।
अति परीत बिरीत कछु औरै, बार-बार मुख जोवत।
परम कुबुद्धि कह्यौ नहिं समुझति, राम-लछन हँकराए।
कौशिल्‍या सुनि परम दीन ह्वै, नैन नीर ढरकाए।
बिहूल तम-मन चकृत भई सो, यह प्रतच्‍छ सुपनाए।
गदगद- कंठ सूर कोसलपुर सोर सुनत दुख पाए॥31॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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