महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 27 श्लोक 21-29

सप्तविंश (27) अध्याय: स्‍त्री पर्व (श्राद्ध पर्व)

Prev.png

महाभारत: स्‍त्रीपर्व: सप्तविंश अध्याय: श्लोक 21-29 का हिन्दी अनुवाद

अहो! आपने इस गूढ़ रहस्य को छिपाकर हम लोगों को मार डाला। कर्ण की मृत्यु से भाईयों सहित हमें बड़ी पीड़ा हो रही है। अभिमन्यु, द्रौपदी के पुत्र और पाञ्चालों के विनाश से और कुरुकुल के इस पतन से हमें जितना दुख हुआ था उससे सौ गुना यह दुख इस समय मुझे अत्यन्त व्यथित कर रहा है। अब तो मैं केवल कर्ण के ही शोक में डूब गया हूँ और इस तहर जल रहा हूँ, मानो किसी ने जलती आग में रख दिया हो। यदि पहले ही यह बात मुझे मालूम हो गयी होती तो कर्ण को पाकर हमारे लिये इस जगत में कोई स्वर्गीय वस्तु भी अलभ्य नहीं होती तथा कुरुकुल का अंत कर देने बाला यह घोर संग्राम भी नहीं हुआ होता। राजन! इस प्रकार बहुत विलाप करके धर्मराज युधिष्ठिर फूट-फूट कर रोने लगे।

रोते-रोते उन्होंने धीरे-धीरे कर्ण के लिये जलदान किया। यह सब सुनकर वहाँ एकत्र हुई सारी स्त्रियाँ जो वहाँ जलांजलि देने के लिये सब ओर खड़ी थीं सहसा जोर-जोर से रोने लगीं। तदन्तर बुद्धिमान कुरुराज युधिष्ठिर ने भाई के प्रेम से कर्ण की स्त्रियों को परिवार सहित बुलवा लिया और उन सबके साथ रहकर उन धर्मात्मा बुद्धिमान धर्मराज युधिष्ठिर ने विधिपूर्वक कर्ण का प्रेतकृत्य सम्पन्न किया। तदन्तर वे बोले- मुझ पापी ने इस रहस्य को न जानने के कारण अपने बड़े भाई को मरवा दिया। अतः आज से स्त्रियों के मन में कोई गुप्त रहस्य नहीं छिपा रह सकेगा। ऐसा कहकर व्याकुल इन्द्रियों वाले राजा युधिष्ठिर गंगा जी के जल से निकले और समस्त भाईयों के साथ तट पर आये।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः