महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 25 श्लोक 32-50

पंचविंश (25) अध्याय: स्त्री पर्व (स्त्रीविलाप पर्व)

Prev.png

महाभारत: स्‍त्रीपर्व: पंचविंश अध्याय: श्लोक 32-50 का हिन्दी अनुवाद

जो नरश्रेष्ठ अपने शस्त्र के वेग से देवताओं को भी नष्ट कर सकते थे, वे ही ये युद्ध में मार डाले गये हैं; यह काल का उलट-फेर तो देखो। माधव! निश्‍चय ही दैव के लिये कोई भी कार्य अधिक कठिन नहीं है; क्योंकि उसने क्षत्रियों द्वारा ही इन शूरवीर क्षत्रिय शिरोमणियों का संहार कर डाला है। श्रीकृष्ण मेरे वेगशाली पुत्र तो उसी दिन मारे डाले गये, जबकि तुम अपूर्ण मनोरथ होकर पुनः उपप्लव्य को लौट गये थे। मुझे तो शान्तनुनन्दन भीष्म तथा ज्ञानी विदुर ने उसी दिन कह दिया था कि अब तुम अपने पुत्रों पर स्नेह न करो। जनार्दन! उन दोनों की यह दृष्टि मिथ्या नहीं हो सकती थी; अतः थोड़े ही समय में मेरे सारे पुत्र युद्ध की आग में जल कर भस्म हो गये।

वैशम्पायन जी कहते हैं- भारत! ऐसा कहकर शोक से मूर्च्छित हुई गान्धारी धैर्य छोड़कर पृथ्वी पर गिर पड़ीं, दुख से उनकी विवेकषक्ति नष्ठ हो गयी। तदन्तर उनके सारे अंगों में क्रोध व्याप्त हो गया। पुत्र शोक में डूब जाने के कारण उनकी सारी इन्द्रियां व्याकुल हो उठीं। उस समय गान्धारी ने सारा दोष श्रीकृष्ण के ही माथे मढ़ दिया। गान्धारी ने कहा- 'श्रीकृष्ण! जनार्दन! पाण्डव और धृतराष्ट्र के पुत्र आपस में लड़कर भस्म हो गये। तुमने इन्हें नष्ट होते देखकर भी इनकी उपेक्षा कैसे कर दी? महाबाहु मधुसूदन! तुम शक्तिशाली थे। तुम्हारे पास बहुत से सेवक और सैनिक थे। तुम महान बल में प्रतिष्ठित थे। दोनों पक्षों से अपनी बात मनवा लेने की सामर्थ्य तुममें मौजूद थी। तुमने वेद-शास्त्रों और महात्माओं की बातें सुनी और जानी थीं। यह सब होते हुए भी तुमने स्वेच्छा से कुरुकुल के नाश की उपेक्षा की जान-बूझकर इस वंश का विनाश होने दिया। यह तुम्हारा महान दोष है, अतः तुम इसका फल प्राप्त करो। चक्र और गदा धारण करने वाले केशव! मैंने पति की सेवा से कुछ जो भी तप प्राप्त किया है, उस दुर्लभ तपोबल से तुम्हें शाप दे रही हूँ।

गोविन्द! तुमने आपस में मार-काट मचाते हुए कुटुम्बी कौरवों और पाण्डवों की उपेक्षा की है; इसलिये तुम अपने भाई-बन्धुओं का भी विनाश कर डालोगे। मधुसूदन! आज से छत्तीसवां वर्ष उपस्थित होने पर तुम्हारे कुटुम्बी, मन्त्री और पुत्र सभी आपस में लड़कर मर जायेंगे। तुम सबसे अपरिचित और लोगों की आंखों से ओझल होकर अनाथ के समान वन में विचरोगे और किसी निन्दित उपाय से मृत्यु को प्राप्त होओगे। इन भरतवंशी स्त्रियों के समान तुम्हारे कुल की स्त्रियां भी पुत्रों तथा भाई-बन्धुओं के मारे जाने पर इसी प्रकार सगे-सम्बन्धियों की लाशों पर गिरेंगी'। वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! वह घोर वचन सुनकर महामनस्वी वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण ने कुछ मुस्कराते हुए से गान्धारी से कहा- 'क्षत्राणी! मैं जानता हूं, यह ऐसा ही होने वाला है। तुम तो किये हुए को ही कह रही हो। इसमें संदेह नहीं कि वृष्णि वंश के यादव देव से ही नष्ट होंगे। शुभे! वृष्णिकुल का संहार करने वाला मेरे सिवा दूसरा कोई नहीं है। यादव दूसरे मनुष्यों तथा देवताओं और दानवों के लिये भी अवध्य हैं; अतः आपस में ही लड़कर नष्ट होंगे। श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर पाण्डव मन-ही-मन भयभीत हो उठे। उन्हें बड़ा उद्वेग हुआ। ये सब-के-सब अपने जीवन से निराश हो गये।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः