महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 20 श्लोक 18-35

विंश (20) अध्याय: स्त्री पर्व (जलप्रदानिक पर्व)

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महाभारत: स्त्री पर्व: विंश अध्याय: श्लोक 18-35 का हिन्दी अनुवाद

उन क्रूरकर्मा कृपाचार्य, कर्ण और जयद्रथ को धिक्कार है, द्रोणाचार्य और उनके पुत्र को भी धिक्कार है। जिन्होंने मुझे इसी उम्र में विधवा बना दिया। आप बालक थे और अकेले युद्ध कर रहे थे तो भी मुझे दुख देने के लिये जिन लोगों ने मिलकर आपको मारा था, उन समस्त श्रेष्ठ महारथियों के मन उस समय क्या दशा हुई थी? वीर! आप पाण्डवों और पाञ्चालों के देखते-देखते सनाथ होते हुए भी अनाथ की भाँति कैसे मारे गये। आपको युद्धस्थल में बहुत से महारथियों द्वारा मारा गया देख आपके पिता पुरुषसिंह वीर पाण्डव कैसे जी रहे हैं?

कमलनयन! प्राणेष्वर! पाण्डवों को यह विशाल राज्य मिल गया है, उन्होंने शत्रुओं को जो पराजित कर दिया है, यह सब कुछ आपके बिना उन्हें प्रसन्न नहीं कर सकेगा। आर्यपुत्र! आपके शस्त्रों द्वारा जीते हुए पुण्यलोकों में मैं भी धर्म और इन्द्रिय संयम के बल से शीघ्र ही आऊँगी। आप वहाँ मेरी राह देखिये। जान पड़ता है कि मृत्यु काल आये बिना किसी का भी मरना अत्यन्त कठिन है, तभी तो मैं अभागिनी आप को युद्ध में मारा गया देखकर भी अब तक जी रही हूँ। नरश्रेष्ठ! आप पितृलोक में जाकर इस समय मेरी ही तरह दूसरी किस स्त्री को मन्द मुस्कान के साथ मीठी वाणी द्वारा बुलायेंगे? निश्‍चय ही स्वर्ग में जाकर आप अपने सुन्दर रूप और मन्द मुस्कानयुक्त मधुर वाणी के द्वारा वहाँ की अप्सराओं के मन को मथ डालेंगे। सुभद्रानन्दन! आप पुण्य आत्माओं के लोकों में जाकर अप्सराओं के साथ मिलकर विहार करते समय मेरे शुभ कर्मों का भी स्मरण कीजियेगा। वीर! इस लोक में तो मेरे साथ आपका कुल छः महीनों तक ही सहवास रहा है। सातवें महीने में ही आप वीरगति को प्राप्त हो गये। इस तरह की वातें कहकर दुख में डूबी हुई इस उत्तरा को जिसका सारा संकल्प मिट्टी में मिल गया है, मत्स्य राजा विराट के कुल की स्त्रियाँ खींचकर दूर ले जा रही हैं।

शोक से आतुर ही उत्तरा को खींचकर अत्यंत आर्त हुई वे स्त्रियाँ राजा विराट को मारा गया देख स्वंय भी चीखने और विलाप करने लगी हैं। द्रोणाचार्य के बाणों से छिन्न-भिन्न हो खून से लथपथ होकर रणभूमि में पड़े हुए राजा विराट को ये गीध, गीदड़ और कौऐ नोच रहे हैं। विराट को उन विहंगमों द्वारा नोचे जाते देख कजरारी आँखों वाली उनकी रानियां आतुत हो-होकर उन्हें हटाने की चेष्टा करती हैं, पर हटा नहीं पाती हैं। इन युवतियों के मुखारबिन्द धूप से तप गये हैं आयास और परिश्रम से उनके रंग फीके पड़ गये हैं। माधव! उत्तर, अभिमन्यु, काम्बोज निवासी सुदक्षिण और सुन्दर दिखाई देने वाले लक्ष्मण- ये सभी बालक थे! इन मारे गये बालकों को देखो। युद्ध के मुहाने पर सोए हुए परम सुन्दर कुमार लक्ष्मण पर भी दृष्टिपात करो।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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