त्रिपन्चाशत्तम (53) अध्याय: सभा पर्व (द्यूत पर्व)
महाभारत: सभा पर्व: त्रिपन्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 20-26 का हिन्दी अनुवाद
पिता जी! न रन्तिदेव, न नाभाग, न मान्धाता, न मनु, न वेननन्दन राजा पृथु, न भगीरथ, न ययाति और न नहुष ही वैसे ऐश्वर्य सम्पन्न सम्राट थे, जैसे कि आज राजा युधिष्ठिर हैं। कुन्तीनन्दन युधिष्ठिर राजसूय यज्ञ पूर्ण करके अत्यन्त उच्च कोटि की राजलक्ष्मी से सम्पन्न हो गये हैं। ये शक्तिशाली महाराज हरिश्चन्द्र की भाँति सुशोभित होते हैं। भारत! हरिश्चन्द्र की भाँति कुन्तीनन्दन युधिष्ठिर की इस राजलक्ष्मी को देखकर मेरा जीवित रहना आप किस दृष्टि से अच्छा समझते हैं? राजन्! यह युग अंधे विधाता से बँधा हुआ है। इसीलिये इसमें सब बातें उल्टी हो रही हैं। छोटे बढ़ रहे हैं और बड़े हीन दशा में गिरते जा रहे हैं। कुरुप्रवीर! ऐसा देखकर अच्छी तरह विचार करने पर भी मुझे चैन नहीं पड़ता। इसी से मैं दुर्बल, कान्तिहीन और शोकमग्न हो रहा हूँ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत सभापर्व के अन्तर्गत द्यूतपर्व में दुर्योधन संतापविषयक-तिरपनवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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