विंश (20) अध्याय: सभा पर्व (जरासंधवध पर्व)
महाभारत: सभा पर्व: विंश अध्याय: श्लोक 17-30 का हिन्दी अनुवाद
वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! युधिष्ठिर के ऐसा कहने पर वे सब महातेजस्वी भाई- श्रीकृष्ण, अर्जुन और भीमसेन मगधराज जरासंध से भिड़ने के लिये उसकी राजधानी की ओर चल दिये। उन्होंने तेजस्वी स्नातक ब्राह्मणों के से वस्त्र पहनकर उनके द्वारा अपने क्षत्रिय रूप को छिपाकर यात्रा की। उस समय हितैषी सुहृदों ने मनोहर वचनों द्वारा उन सबका अभिनन्दन किया। जरासंध के प्रति रोष के कारण वे प्रज्वलित से हो रहे थे। जाति भाइयों के उद्धार के लिये उनका महान् तेज प्रकट हुआ था। उस समय सूर्य, चन्द्रमा और अग्नि के समान तेजस्वी शरीर वाले उन तीनों का स्वरूप अत्यन्त उद्भासित हो रहा था। एक ही कार्य के लिये उद्यत हुए और युद्ध में कभी पराजित न होने वाले उन दोनों (कृष्णों को अर्थात् नर-नारायण-रूप कृष्ण और अर्जुन) को भीमसेन को आगे लिये जाते देख युधिष्ठिर को यह निश्चय हो गया कि जरासंध अवश्य मारा जायगा। क्योंकि वे दोनों महात्मा निमेष-उन्मेष से लेकर महाप्रलय पर्यन्त समस्त कार्यों के नियन्ता तथा धर्म, काम और अर्थ साधन में लगे हुए लोगों को तत्सम्बन्धी कार्यों में लगाने वाले ईश्वर (नर-नारायण) हैं। वे तीनों कुरुदेश से प्रस्थित हो कुरुजांगल के बीच से होते हुए रमणीय पद्मसरोवर पर पहुँचे। फिर कालकूट पर्वत को लाँघकर गण्डकी, महाशोण, सदानीरा एवं एक पर्वत तक प्रदेश की सब नदियों को क्रमशः पार करते हुए आगे बढ़ते गये। इससे पहले मार्ग में उन्होंने रमणीय सरयू नदी पार करके पूर्वी कोसल प्रदेश में भी पदार्षण किया था। कोसल पार करके बहुत-सी नदियों का अवलोकन करते हुए वे मिथिला में गये। गंगा और शोणभद्र को पार करके वे तीनों अच्युत वीर पूर्वाभिमुख होकर चलने लगे। उन्होंने कुश एवं चीर से ही अपने शरीर को ढक रखा था। जाते-जाते वे मगध क्षेत्र की सीमा में पहुँच गये। फिर सदा गोधन से भरे-पूरे, जल से परिपूर्ण तथा सुन्दर वृक्षों से सुशोभित गोरथ पर्वत पर पहुँचकर उन्होंने मगध की राजधानी को देखा।
इस प्रकार श्रीमहाभारत सभापर्व के अन्तर्गत जरासंध पर्व में कृष्ण, अर्जुन एवं भीमसेन की मगधयात्रा-विषयक बीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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