महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 310 श्लोक 21-26

दशाधिकत्रिशततम (310) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: दशाधिकत्रिशततम अध्याय: श्लोक 21-26 का हिन्दी अनुवाद


श्रोत्र, त्‍वचा, नेत्र, जिह्वा, और पाँचवीं नासिका—इसे छठा सर्ग बताया गया है। यह बहुचिन्‍तात्‍मक सर्ग माना गया है। नरेन्‍द्र! श्रोत्र आदि इन्द्रियों के बाद कर्मेन्द्रियों की उत्‍पति होती है। इसे सातवाँ सर्ग कहते हैं। इसी को एन्द्रियक सृष्टि भी कहा जाता है। तदनन्‍तर जिसका प्रवाह ऊपर की ओर है, वह प्राण एवं तिरछा चलने वाले समान, व्‍यान और उदान—ये सब प्रकट हुए। यह आठवाँ सर्ग है। इसी को आर्जवक सर्ग कहा गया है। राजन्! तत्‍पश्‍चात् जिसका प्रवाह तिरछा चलता है, वे व्‍यान और उदान अपान वायु के साथ निम्‍नभाग में प्रकट हुए। इसे नवम सर्ग कहते हैं। इसे भी विद्वान् पुरुष आर्जवक सृष्टि के नाम से पुकारते हैं। नरेश्‍वर! ये नौ सर्ग और चौबीस तत्‍व श्रुति के निर्देश के अनुसार यहाँ बताये गये हैं। महाराज! अब इसके बाद महात्‍मा पुरुषों द्वारा बतायी गयी इस गुणमयी सृष्टि की काल संख्‍या भी मुझसे यथावत् रूप से सुनो।

इस प्रकार श्री महाभारत शान्ति पर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्म पर्व याज्ञवल्क्य जनक संवाद विषयक तीन सौ दसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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