अष्टाविंश (28) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: अष्टाविंश अध्याय: श्लोक 52-59 का हिन्दी अनुवाद
मनुष्य पहले ब्रह्मचर्य का पालन करके संतानोत्पादन के लिये विवाह करे, नेत्र आदि इन्द्रियों को पवित्र रखे ओर स्वर्गलोग तथा इहलोक के सुख की आशा छोड़कर हृदय के शोक-संताप को दूर करके यज्ञ-परायण हो परमात्मा की आराधना करता रहे। राजा यदि नियमपूर्वक प्रजा के निकट से करके रूप में द्रव्य ग्रहण करे और राग-द्वेष से रहित हो राजधर्म का पालन करता रहे तो उस धर्मपरायण नरेश का सुयश सम्पूर्ण चराचर लोकों में फैल जाता है। निर्मल बुद्धि वाले विदेहराज जनक अश्मा का यह युक्तिपूर्ण सम्पूर्ण उपदेश सुनकर शोकरहित हो गये और उनकी आज्ञा ले अपने घर को लौट गये। अपने धर्म से कभी च्युत न होने वाले इन्द्रतुल्य पराक्रमी कुन्तीकुमार युधिष्ठिर! तुम भी शोक छोड़कर उठो और हृदय में हर्ष धारण करो। तुमने क्षत्रिय धर्म के अनुसार इस पृथ्वी पर विजय पायी है; अतः इसे भोगो। इसकी अवहेलना न करो।
इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत राजधर्मानुशासन पर्व में व्यासवाक्य-विषयक अट्ठाईसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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