चतुस्त्रिंशदधिकद्विशततम (234) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: चतुस्त्रिंशदधिकद्विशततम श्लोक 17-38 का हिन्दी अनुवाद
अत्रिवंश मे उत्पन्न महातेजस्वी सांकृति अपने शिष्यों को निर्गुण ब्रह्मा का उपदेश देकर उत्तम लोकों को प्राप्त हुए। प्रतापी राजा अम्बरीष ने ब्राह्मणों को ग्यारह अर्बुद (एक अरब दस करोड़) गौए दान देकर देशवासियों सहित स्वर्गलोक प्राप्त किया। सावित्रि ने दो दिव्य कुण्डलदान किये थे और राजा जनमेजय ने ब्राह्मण के लिये अपने शरीर का परित्याग किया था। इससे वे दोनों उत्तम लोक में गये। वृषदर्भ के पुत्र युवनाश्व सब प्रकार के रत्न, अभीष्ट स्त्रियॉ तथा सुरम्य गृह दान करके स्वर्गलोक में निवास करते हैं। विदेहराज निमि ने अपना राज्य और जमदग्निनन्दन परशुराम तथा राजा गय ने नगरों सहित सम्पूर्ण पृथ्वी ब्राह्मण को दान में दे दी थी। एक बार पानी न बरसने पर महर्षि वसिष्ठ ने प्राणियों की सृष्टि करने वाले दूसरे प्रजापति के समान सम्पूर्ण प्रजा को जीवनदान दिया था। करन्धम के पुण्यात्मा पुत्र राजा मरूत्त ने महर्षि अंगिरा को कन्यादान करके तत्काल स्वर्गलोक प्राप्त कर लिया था। बुद्धिमान में श्रेष्ठ पांचाल राज ब्रह्मादत्त ने उत्तम ब्राह्मणों को शंखनिधि देकर पुण्यलोक प्राप्त किये थे। राजा मित्रसह ने महात्मा वसिष्ठ को अपनी प्यारी रानी मदयन्ती देकर उसके साथ ही स्वर्गलोक में पदार्पण किया था। महायशस्वी राजर्षि सहस्त्रजित ब्राह्मण के लिये अपने प्यारे प्राणों का परित्याग करके परम उत्तम लोकों में गये। महाराज शतद्युम्न मुद्गल ब्राह्मण को समस्त भोगों से सम्पन्न सुवर्णमय भवन देकर स्वर्गलोक में गये थे। प्रतापी शाल्वराज द्युमिमान ने ऋचीक को राज्य देकर परम उत्तम लोक प्राप्त किये थे। शक्तिशाली राजर्षि लोमपाद अपनी पुत्री शान्ता का ऋष्यश्रृग मुनि को दान करके सब प्रकार के प्रचुर भोगों से सम्पन्न हो गये। राजर्षि मदिराश्व हिरण्यहस्त को अपनी सुन्दरी कन्या देकर देववन्दित लोकों में गये थे। महातेजस्वी राजा प्रसेनजित ने एक लाख सवत्सा गौओं का दान करके उत्तम लोक प्राप्त किये थे। ये तथा और भी बहुत-से शिष्ट स्वभाव वाले जितेन्द्रिय महात्मा दान और तपस्या से स्वर्गलोक में चले गये। जब तक यह पृथ्वी रहेगी, तब तक उनकी कीर्ति संसार में स्थिर रहेगी। उन सबने दान, यज्ञ और प्रजा सृष्टि के द्वारा स्वर्गलोक प्राप्त किया था। इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्मपर्व में शुककानुप्रश्नविषयक दो सौ चौंतीसवॉ अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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