महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 225 श्लोक 32-38

पंचर्विंशत्‍यधिकद्विशततम (225) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: पंचर्विंशत्‍यधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 32-38 का हिन्दी अनुवाद

शतक्रतो! जब सूर्य एक स्‍थान अर्थात ब्रह्मलोक में ही स्थित होकर नीचे के सम्‍पूर्ण लोकों को ताप देने लगेंगे, उस समय देवासुर संग्राम में मैं तुम्‍हें अवश्‍य जीत लूँगा[1] इन्‍द्र ने कहा- बले! ब्रह्मा जी ने मुझे आज्ञा दी है कि तुम बलि का वध न करना; इसीलिये तुम्‍हारे मस्‍तक पर मैं अपना वज्र नहीं छोड़ रहा हूँ। दैत्‍यराज! तुम्‍हारी जहाँ इच्‍छा हो, चले जाओ। महान असुर! तुम्‍हारा कल्‍याण हो। सूर्य कभी मध्‍याह्न में ही स्थित होकर सम्‍पूर्ण लोकों को ताप नहीं देंगे। ब्रह्मा जी ने पहले से ही उनके लिये मर्यादा स्‍थापित कर दी है, अत: उसी सत्‍यमर्यादा के अनुसार सूर्य सम्‍पूर्ण लोकों को ताप प्रदान करते हुए निरन्‍तर परिभ्रमण करते हैं। उनके दो मार्ग हैं- उत्‍तर और दक्षिण। छ: महीनों का उत्‍तरायण होता है और छ: महीनों का दक्षिणायन। उसी से सम्‍पूर्ण जगत में सर्दी-गर्मी की सृष्टि करते हुए सूर्यदेव भ्रमण करते हैं।

भीष्‍म जी कहते हैं- भारत! इन्‍द्र के ऐसा कहने पर दैत्‍यराज बलि दक्षिण दिशा को चले गये और स्‍वयं इन्‍द्र उत्‍तर दिशा को। राजा बलि का वह पूर्वोक्‍त अहंकार संज्ञक वाक्‍य सुनकर सहस्रनेत्रधारी इन्‍द्र पुन: आकाश को ही उड़ चले।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्म पर्व में श्रीसंनिधान नामक दो सौ पचीसवॉ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वैवस्‍वत मन्‍वन्‍तर को आठ भागों में विभक्‍त करके जब अन्तिम आठवाँ भाग व्‍यतीत होने लगेगा, तब पूर्व आदि चारों दिशाओं में जो इन्‍द्र, यम, तरुण, और कुबेर की चार पुरियाँ हैं, वे नष्‍ट हो जायँगी। उस समय केवल ब्रह्मलोक में स्थित होकर सूर्य के नीचे के सम्‍पूर्ण लोकों को प्रकाशित करेंगे। उसी समय सावर्णिक मन्‍वन्‍तर का आरम्‍भ होगा, जिसमे राजा बलि इन्‍द्र होगे। (नीककण्‍डी)

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