महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 199 श्लोक 18-34

नवनवत्‍यधिकशततम (199) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: नवनवत्‍यधिकशततम अध्याय: श्लोक 18-34 का हिन्दी अनुवाद

वह सदा मन और इन्द्रियों को संयम रखता था, क्रोध को जीत चुका था। अपनी की हुई प्रतिज्ञा का सचाई के साथ पालन करता था और किसी के दोष नहीं देखता था। बुद्धिमान ब्राह्मण का वह नियम पूर्ण होने पर साक्षात भगवान धर्म उस समय उस पर बहुत प्रसन्‍न हुए और उन्‍होंने उसे प्रत्‍यक्ष दर्शन दिया। धर्म बोले– विप्रवर! तुम मेरी ओर देखो। मैं धर्म हूँ। तुम्‍हें इस जप का जो फल प्राप्‍त हुआ है, वह सब मुझसे सुन लो। तुमने दिव्‍य और मानुष सभी लोकों पर विजय प्राप्‍त की है। साधो! तुम सम्‍पूर्ण देवताओं के लोकों को लाँघकर उनसे भी ऊपर जाओंगे। मुने! अब तुम अपने प्राणों का परित्‍याग करो और अभीष्ट लोकों में जाओ। अपने शरीर का परित्‍याग करने के पश्‍चात ही तुम उन पुण्‍यलोकों में जाओगे। ब्राह्मण ने कहा- धर्म! मुझे उन लोकों को लेकर क्‍या करना है? आप सुखपूर्वक यहाँ से अपने स्‍थान को पधारिये। प्रभो! मैंने इस शरीर के साथ बहुत दु:ख और सुख उठाया है; अत: इसका त्‍याग नहीं कर सकता। धर्म बोले- निष्‍पाप मुनिश्रेष्ठ! शरीर तो तुम्‍हें अवश्‍य त्‍यागना पड़ेगा। विप्रवर! अब स्‍वर्गलोक पर आरूढ़ हो जाओ अथवा तुम्‍हारी क्‍या रुचि है? बताओ। ब्राह्मण ने कहा- प्रभो! मैं इस शरीर के बिना स्‍वर्गलोक में निवास करना नहीं चाहता; अत: धर्मदेव! आप यहाँ से जाइये। इस शरीर को छोड़कर स्‍वर्गलोक में जाने के लिये मेरे मन में तनिक भी उत्‍साह नहीं है। धर्म बोले- मुने! शरीर में मन को आसक्‍त रखना ठीक नहीं है। तुम देह त्‍यागकर सुखी हो जाओ। उन रजोगुणरहित निर्मल लोकों में जाओ, जहाँ जाकर फिर तुम्‍हें शोक नहीं करना पड़ेगा। ब्राह्मण ने कहा- महाभाग! मैं तो जप में ही सुख मानता हूँ। मुझे सनातन लोकों को लेकर क्‍या करना है? भगवन! यह बताइये, मैं सशरीर स्‍वर्गलोक में जा सकता हूँ या नहीं? धर्म बोले- ब्रह्मन! यदि तुम शरीर छोड़ना नहीं चाहते हो तो देखों, ये काल, मृत्‍यु और यम तुम्‍हारे पास आये है।

भीष्‍म जी कहते हैं- राजन! तदनन्‍तर वैवस्‍वत यम, काल और मृत्‍यु तीनों उस महाभाग ब्राह्मण के पास जाकर इस प्रकार बोले।

यमराज बोले- ब्रह्मन! तुम्‍हारे द्वारा भली-भाँति की हुई इस तपस्या का तथा शुभ आचरणों का भी तुम्‍हें उत्‍तम फल प्राप्‍त हुआ है। मैं यमराज हूँ और स्‍वयं तुमसे यह बात कहता हूँ। काल ने कहा- विप्रवर! तुम्‍हारे इस जप को यथा योग्‍य सर्वोत्तम फल प्राप्‍त हुआ हैं। अत: अब तुम्‍हारे लिये स्‍वर्गलोक में जाने का समय आया है। यही सूचित करने के लिये मैं साक्षात्काल तुम्‍हारे पास आया हूँ। मृत्‍यु ने कहा- धर्मज्ञ ब्राह्मण! मुझे मृत्‍यु समझो! मैं स्‍वयं ही शरीर धारण करके यहाँ आया हूँ। विप्रवर! मैं काल से प्रेरित होकर आज तुम्‍हें यहाँ से ले जाने के लिये उपस्थित हुआ हूँ। ब्राह्मण ने कहा- सूर्यपुत्र यम, महामना काल, मृत्‍यु तथा धर्म– इन सबका स्‍वागत है। बताइये, मैं आप लोगों का कौन सा कार्य करूँ?

भीष्‍म जी कहते हैं - राजन! वहाँ उन सबका समागम होने पर ब्राह्मण ने उनके लिये अर्घ्‍य और पाद्य देकर बड़ी प्रसन्‍नता के साथ कहा– ‘देवताओं! मैं अपनी शक्‍ति के अनुसार आप लोगों की क्‍या सेवा करूँ?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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