महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 179 श्लोक 30-37

एकोनाशीत्यधिकशततम (179) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: एकोनाशीत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 30-37 का हिन्दी अनुवाद

‘सुख–दुख, लाभ–हानि, अनुकूल और प्रतिकूल तथा जीवन और मरण– ये सब देव के अधीन है। इस प्रकार यथार्थरूप से जानकर मैं शुद्धभाव से इस आजगर व्रत का आचरण करता हूँ। ‘मेरे भय, राग, मोह, और अभिमान नष्‍ट हो गये हैं। मैं धृत, मति और बुद्धि से सम्‍पन्‍न एवं पूर्णतया शांत हूँ। और प्रारब्‍धवश स्‍वत अपने समीप आयी हूई वस्‍तु का ही उपभोग करने वालों को देखकर मैं पवित्र भाव से इस आजगर व्रत का आचरण करता हूँ। ‘मेरे सेाने-बैठने का कोई नियत स्‍थान नहीं हैं। मैं स्‍वभावत दम, नियम, व्रत, सत्‍य और शौचाचार से सम्‍पन्‍न हूँ। मेरे कर्म फल–संचय का नाश हो चुका हैं।

मैं प्रसन्‍नतापूर्वक पवित्रभाव से इस आजगरव्रत का आचरण करता हूँ। ‘जिनका परिणाम दु:ख है, उन इच्‍छा के विषयभूत समस्‍त पदार्थो से जो विरक्‍त हो चुका है, ऐसे आत्मनिष्‍ठ महापुरुष को देखकर मुझे ज्ञान प्राप्‍त हो गया है। अत: मैं तृष्‍णा से व्‍याकुल असंयत मन को वश में करने के लिये पवित्रभाव से इस आजगर–व्रत का आचरण करता हूँ। ‘मन, वाणी और बुद्धि की उपेक्षा करके इनको प्रिय लगने वाले विषय–सुखों की दुर्लभता तथा अनित्‍यता- इन दोनों को देखने वाले की भाँति मैं पवित्रभाव से इस आजगर व्रत का आचरण करता हूँ। ‘अपनी कीर्ति का विस्तार करने वाले विदाव्नों और बुद्धिमानों ने अपने और दूसरों के मत से गहन तर्क और वितर्क करके ‘ऐसे करना चाहिये’ ‘ऐसे करना चाहिये’ इत्‍यादि कहकर इस व्रत की अनेक प्रकार से व्याख्‍या की है।

‘मूर्ख लोग इस अजगरवृत्ति को सुनकर इसे पहाड़ की चोटी से गिरने की भाँति भयंकर समझते हैं। परंतु उनकी वह मान्यता भिन्न है। मैं इसे अजगरवृत्ति को अज्ञान का नाशक और समस्त दोषों से रहित मानता हूँ। अत: दोष और तृष्‍णा का त्याग करके मनुष्‍यों में विचरता हूँ। भीष्‍म जी कहते हैं- राजन्! जो महापुरुष राग, भय, लोभ, मोह और क्रोध को त्यागकर इस आजगर व्रत का पालन करता है, वह इस लोक में सानन्द विचरण करता है।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्मपर्व में अजगरवृत्ति से रहने वाले मुनि और प्रहाद का संवादविषयक एक सौ उनासीवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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