नवाधिकशततम (109) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: नवाधिकशततम अध्याय: श्लोक 14-25 का हिन्दी अनुवाद
कोई नीच मनुष्य भी यदि दूसरों की कार्यसिद्धि की इच्छा से धर्म के लिये भीख माँगने आवे तो उसे देने की प्रतिज्ञा कर लेने पर अवश्य ही धन का दान देना चाहिये। इस प्रकार धनोपार्जन करने वाला यदि कपटपूर्णं व्यवहार करता है तो वह दण्ड का पात्र होता है। जो कोई धर्मंसाधक मनुष्य धार्मिक आचार से भ्रष्ट हो पापमार्गं का आश्रय ले, उसे अवश्य दण्ड के द्वारा मारना चाहिये। जो दुष्ट धर्ममार्ग से भ्रष्ट होकर आसुरी प्रवृत्ति में लगा रहता है और स्वधर्म का परित्याग करके पाप से जीविका चलाना चाहता है, कपट से जीवन-निर्वाह करने वाले उस पापात्मा को सभी उपायों से मार डालना चाहिये; क्योंकि सभी पापात्माओं का यही विचार रहता है कि जैसे बने, वैसे धन को लूट-खसोट कर रख लिया जाय। ऐसे लोग दूसरों के लिये असह्य हो उठते हैं। इनका अन्न न तो स्वयं भोजन करे और न इन्हें ही अपना अन्न दे; क्योंकि ये छल-कपट के द्वारा पतन के गर्त में गिर चुके हैं और देवलोक तथा मनुष्य लोक दोनों से वंचित हो प्रेतों के समान अवस्था को पहुँच गये हैं। इतना ही नहीं, वे यज्ञ और तपस्या से भी हीन है; अतः तुम कभी उनका संग न करो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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