महाभारत शल्य पर्व अध्याय 9 श्लोक 23-47

नवम (9) अध्याय: शल्य पर्व

Prev.png

महाभारत: शल्य पर्व: नवम अध्याय: श्लोक 23-47 का हिन्दी अनुवाद

वहाँ सैकड़ों कबन्ध सब और बिखरे पड़े थे। छत्र और चँवर भरे हुए थे। उन सबसे वह सेनारूपी वन फूलों से व्याप्त हुई विशाल विपिन के समान सुशोभित होता था। महाराज! वहाँ खून से लथपथ शरीर लेकर निर्भय-से विचरने वाले योद्धा फूले हुए पलाश वृक्षों के समान दिखायी देते थे। रणभूमि में बाणों और तोमरों की मार से पीड़ित हो जहाँ तहाँ गिरते हुए मत वाले हाथी भी कटे हुए बादलों के समान दिखायी देते थे। महाराज! वायु के वेग से छिन्न-भिन्न हुए बादलों के समान महामनस्वी वीरों के बाणों से घायल हुई गजसेना सम्पूर्ण दिशाओं में विदीर्ण हो रही थी। मेघों की घटा के समान प्रतीत होने वाले हाथी चारों ओर से पृथ्वी पर पड़े थे, जो प्रलयकाल में वज्र के आघात से विदीर्ण होकर गिरे हुए पर्वतों के समान प्रतीत होते थे।

सवारों सहित धरती पर गिरे हुए घोड़ों के पहाड़ों- जैसे ढेर यत्र-तत्र दृष्टिचोगर होते थे। उस समय रणभूमि में एक रक्त की नदी बह चली, जो परलोक की ओर प्रवाहित होने वाली थी। रक्त ही उसका जल था, रथ भँवर के समान प्रतीत होते थे, ध्वज तटवर्ती वृक्ष के समान जान पड़ते थे, हड्डियाँ कंकड़-पत्थरों का भ्रम उत्पन्न करती थीं, कटी हुई भुजाएँ नाकों के समान दिखायी देती थीं, धनुष उसके स्त्रोत थे, हाथी पार्श्‍ववर्ती पर्वत और घोडे़ प्रस्तर-खण्ड के तुल्य थे, मेदा और मज्जा ये ही उसके पंख थे, छत्र हंस थे, गदाएँ नौका जान पड़ती थीं, जल को आच्छादित किये हुए थीं, पताकाएँ सुन्दर वृक्ष-सी दिखायी देती थीं, चक्र (पहिये) चक्रवाकों के समूह की भाँति उस नदी का सेवन करते थे और त्रिगुणरूपी सर्प उसमें भरे हुए थे। वह भयंकर नदी शूरवीरों के लिये हर्षजनक तथा कायरों के लिये भय बढ़ाने वाली थी। कौरवों और सृंजयों के समुदाय से वह व्याप्त हो रही थी। परलोक की ओर ले जाने वाली उस अत्यन्त भयंकर नदी को परिघ-जैसी मोटी भुजाओं वाले शूरवीर योद्धा अपने-अपने वाहनरूपी नौकाओं द्वारा पार करते थे।

संजय बोले- प्रजानाथ! परंतप! प्राचीन देवासुर-संग्राम के समान चतुरंगिणी सेना का विनाश करने वाला वह मर्यादाशून्य घोर युद्ध जब चलने लगा; तब भय से पीड़ित हुए कितने ही सैनिक अपने बन्धु-बान्धवों को पुकारने लगे और बहुत-से योद्धा प्रियजनों के पुकारने पर भी पीछे नहीं लौटते थे। इस प्रकार वह भयानक युद्ध सारी मर्यादा तोड़कर चल रहा था। उस समय अर्जुन और भीमसेन ने शत्रुओं को मूर्च्छित कर दिया था। नरेश्वर! उनकी मार पड़ने से आपकी विशाल सेना मदमत्त युवती की भाँति जहाँ की तहाँ बेहोश हो गयी। उस कौरव सेना को मूर्च्छित करके भीमसेन और अर्जुन शंख बजाने तथा सिंहनाद करने लगे। उस महान शब्द को सुनते ही धृष्टद्युम्न और शिखण्डी धर्मराज युधिष्ठिर को आगे करके मद्रराज शल्य पर धावा कर दिया। प्रजानाथ! वहाँ हमने भयंकर आश्चर्य की बात देखी कि पृथक-पृथक दल बनाकर आये हुए सभी शूरवीर अकेले शल्य के साथ ही जूझते रहे।

शत्रुओं को संताप देने वाले नरेश! अस्त्रों के ज्ञाता, रणदुर्मद और वेगशाली वीर माद्रीकुमार नकुल-सहदेव विजय की अभिलाषा लेकर बड़ी उतावली के साथ राजा शल्य पर चढ़ गये। भरतश्रेष्ठ! विजय से उल्लसित होने वाले पाण्डवों ने अपने बाणों की मार से आपकी सेना को बारंबार घायल किया। महाराज! इस प्रकार चोट सहती हुई वह सेना बाणों की वर्षा से क्षत-विक्षत हो आपके पुत्रों के देखते-देखते सम्पूर्ण दिशाओं में भाग चली। भरतनन्दन! वहाँ आपके योद्धाओं में महान हाहाकार मच गया। भागे हुए योद्धाओं के पीछे महामनस्वी पाण्डव वीरों की ठहरो, ठहरो की आवाज सुनायी देने लगी। भारत! युद्ध में परस्पर विजय की अभिलाषा रखने वाले क्षत्रियों में से पाण्डवों द्वारा पराजित होकर आपके सैनिक युद्ध में अपने प्यारे पुत्रों, भाईयों, पितामहों, मामाओं, भानजों और मित्रों को भी छोड़कर भाग गये। भरतश्रेष्ठ! अपनी रक्षामात्र के लिये उत्साह रखने वाले आपके सैनिक घोड़ों और हाथियों की तीव्र से हाँकते हुए सब ओर भाग चले।


Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः