महाभारत शल्य पर्व अध्याय 50 श्लोक 19-42

पन्चाशत्तम (50) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

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महाभारत: शल्य पर्व: पन्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 19-42 का हिन्दी अनुवाद

आश्रम में प्रवेश करते ही देवल मुनि ने वहाँ बैठे हुए जैगीषव्य को देखा, परंतु जैगीषव्य ने उस समय भी किसी तरह उनसे बात नहीं की। वे महातपस्वी मुनि आश्रम पर काष्ठमौन होकर बैठे हुए थे। राजन! समुद्र के समान अत्यन्त प्रभावशाली मुनि को समुद्र के जल में स्नान करके अपने से पहले ही आश्रम में प्रविष्ट हुआ देख बुद्धिमान असित देवल को पुनः बड़ी चिन्ता हुई। राजेन्द्र! जैगीषव्य की तपस्या का वह योग जनित प्रभाव देखकर ये मुनिश्रेष्ठ देवल फिर सोचने लगे- ‘मैंने इन्हें अभी-अभी समुद्र तट पर देखा है, फिर ये आश्रम में कैसे उपस्थित हैं?’ प्रजानाथ! ऐसा विचार करते हुए वे मन्त्रशास्त्र के पारंगत विद्वान मुनि उस आश्रम से आकाश ही ओर उड़ चले। उस समय भिक्षु जैगीषव्य की परीक्षा लेने के लिये उन्होंने ऐसा किया। ऊपर जाकर उन्होंने बहुत से अन्तरिक्षचारी एकाग्र चित्त वाले सिद्धों को देखा। साथ ही उन सिद्धों के द्वारा पूजे जाते हुए जैगीषव्य मुनि का भी उन्हें दर्शन हुआ। तदनन्तर दृढ़तापूर्वक व्रत का पालन करने वाले दृढ़ निश्चयी असित देवल मुनि रोषावेश में भर गये। फिर उन्होंने जैगीषव्य को स्वर्ग लोक में जाते देखा। स्वर्ग लोक से उन्हें पितृलोक में और पितृलोक से यमलोक में जाते देखा। वहाँ से भी ऊपर उठकर महामुनि जैगीषव्य जलमय चन्द्रलोक में जाते दिखायी दिये। फिर वे एकान्ततः यज्ञ करने वाले पुरुषों के उत्तम लोकों की ओर उड़ते दिखायी दिये। वहाँ से वे अग्निहोत्रियों के लोकों मेें गये। उन लोकों से ऊपर उठकर वे बुद्धिमान मुनि उन तपोधनों के लोक में गये, जो दर्श और पौर्णमास यज्ञ करते हैं।

वहाँ से वे पशुयाग करने वालों के लोकों में जाते दिखायी दिये। जो तपस्वी नाना प्रकार के चातुर्मास यज्ञ करते हैं, उनके निर्मल लोकों में जाते हुए जैगीषव्य को देवल मुनि ने देखा। वे वहाँ देवताओं से पूजित हो रहे थे। वहाँ से अग्निष्टोमया जी तथा अग्निष्टुत यज्ञ के द्वारा यज्ञ करने वाले तपोधनों के लोक में पहुँचे हुए जैगीषव्य को देवल मुनि ने देखा। जो महाप्राज्ञ पुरुष बहुत सी सुवर्णमयी दक्षिणाओं से युक्त क्रतुश्रेष्ठ वाजपेय यज्ञ का अनुष्ठान करते हैं, उनके लोकों में भी उन्होंने जैगीषव्य का दर्शन किया। जो राजसूय पुण्डरीक यज्ञ के द्वारा यजन करते हैं, उनके लोकों में भी देवल ने जैगीषव्य को देखा। जो नरश्रेष्ठ क्रतुओं में उत्तम अश्वमेध तथा नरमेध का अनुष्ठान करते हैं, उनके लोकों में भी उनका दर्शन किया। जो लोग दुर्लभ सर्वमेध तथा सौत्रामणि यज्ञ करते हैं, उनके लोकों में भी देवल ने जैगीषव्य को देखा। नरेश्वर! जो नाना प्रकार के द्वादशाह यज्ञ का अनुष्ठान करते हैं, उनके लोकों में भी देवल ने जैगीषव्य का दर्शन किया। तत्पश्चात असित ने मित्र, वरुण और आदित्यों के लोकों में पहुँचे हुए जैगीषव्य को देखा। तदनन्तर रुद्र, वसु और बृहस्पति के जो स्थान हैं, उन सब को लांघ कर ऊपर उठे हुए जैगीषव्य का असित देवल ने दर्शन किया। इसके बाद असित ने गौओं के लोक में जाकर जैगीषव्य को ब्रह्मसत्र करने वालों के लोकों में जाते देखा। तत्पश्चात देवल ने देखा कि विप्रवर जैगीषव्य मुनि अपने तेज से ऊपर-ऊपर के तीन लोकों को लांघ कर पतिव्रताओं के लोक में जा रहे हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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