महाभारत शल्य पर्व अध्याय 46 श्लोक 55-75

षट्चत्वारिंश (46) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

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महाभारत: शल्य पर्व: षट्चत्वारिंश अध्याय: श्लोक 55-75 का हिन्दी अनुवाद

नैर्ऋतों (भूतगणों) की वह भयंकर सेना घंटा, भेरी, शंख और मृदंग की ध्वनि से गूंज रही थी। उसकी ऊंचे उठी हुई पताकाएं फहरा रही थीं। अस्त्र-शस्त्रों और पताकाओं से सम्पन्न वह विशाल वाहिनी नक्षत्रों से सुशोभित शरद काल के आकाश की भाँति शोभा पा रही थी। तदनन्तर वे देवसमूह तथा नाना प्रकार के भूतगण शान्तचित्त हो भेरी, बहुत से शंख, पटह, झांझ, क्रकच, गोश्रृंग, आडम्बर, गोमुख और भारी आवाज करने वाले नगाड़े बजाने लगे। फिर इन्द्र सहित सम्पूर्ण देवता कुमार की स्तुति करने लगे। देव-गन्धर्व गाने और अप्सराएं नाचने लगीं। इससे प्रसन्न होकर कुमार महासेन ने देवताओं को यह वर दिया कि ‘जो आप लोगों का वध करना चाहते हैं, आपके उन समस्त शत्रुओं का मैं समरांगण में संहार कर डालूंगा’। उन सुरश्रेष्ठ कुमार से वह वर पाकर महामनस्वी देवता बड़े प्रसन्न हुए और अपने शत्रुओं को मरा हुआ ही मानने लगे। महात्मा कुमार के वर देने पर सम्पूर्ण भूत-समुदायों ने जो हर्षनाद किया, वह तीनों लोकों में गूंज उठा। तत्पश्चात विशाल सेना से घिरे हुए स्वामी महासेन युद्ध में दैत्यों का वध और देवताओं की रक्षा करने के लिये आगे बढ़े। नरेश्वर! उस समय व्यवसाय (दृढ़ निश्चय), विजय, धर्म सिद्धि लक्ष्मी, धृति और स्मृति- ये सब के सब महासेन के सैनिकों के आगे-आगे चलने लगे। वह सेना बड़ी भयंकर थी। उसने हाथों में शूल, मुद्गर, जलते हुए काठ, गदा, मुसल, नाराच, शक्ति और तोमर धारण कर रखे थे। सारी सेना विचित्र आभूषणों और कवचों से सुसज्जित थी तथा दर्पयुक्त सिंह के समान दहाड़ रही थी, उस सेना के साथ सिंहनाद करके कुमार कार्तिकेय युद्ध के लिये प्रस्थित हुए। उन्हें देखकर सम्पूर्ण दैत्य, दानव और राक्षस भय से अद्विग्न हो सारी दिशाओं में सब ओर भाग गये।

देवता अपने हाथों में नाना प्रकार के अस्त्र शस्त्र ले उन दैत्यों का पीछा करने लगे। यह सब देखकर तेज और बल से सम्पन्न भगवान स्कन्द कुपित हो उठे और शक्ति नामक भयानक अस्त्र का बारंबार प्रयोग करने लगे। उन्होंने उसमें अपना तेज स्थापित कर दिया था और वे उस समय घी से प्रज्वलित हुई अग्नि के समान प्रकाशित हो रहे थे। महाराज! अमित तेजस्वी स्कन्द के द्वारा शक्ति का बारंबार प्रयोग होने से पृथ्वी पर प्रज्वलित उल्का गिरने लगीं। नरेश्वर! जैसे प्रलय के समय अत्यन्त भयंकर वज्र भारी गड़गड़ाहट के साथ पृथ्वी पर गिरने लगते हैं, उसी प्रकार उस समय भी भीषण गर्जना के साथ वज्रपात होने लगा। भरतश्रेष्ठ! अग्नि कुमार ने जब एक बार अत्यन्त भयंकर शक्ति छोड़ी, तब उससे कराड़ों शक्तियां प्रकट होकर गिरने लगी। इससे प्रभावशाली भगवान महासेन बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने महान बल एवं पराक्रम से सम्पन्न उस दैत्यराज तारक को मार गिराया, जो एक लाख बलवान एवं वीर दैत्यों से घिरा हुआ था। साथ ही उन्होंने युद्धस्थल में आठ पदम दैत्यों से घिरे हुए महिषासुर का, दस लाख असुरों से सुरक्षित त्रिपाद का और दस निखर्व दैत्य-योद्धाओं से घिरे हुए हदोदर का भी नाना प्रकार के आयुधधारी अनुचरों सहित वध कर डाला।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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