महाभारत शल्य पर्व अध्याय 45 श्लोक 86-98

पन्चचत्वारिंश (45) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

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महाभारत: शल्य पर्व: पन्चचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 86-98 का हिन्दी अनुवाद

किन्हीं-किन्हीं के मुख गिरगिट के समान जान पड़ते थे। कुछ बहुत ही श्वेत वस्त्र धारण करते थे। किन्हीं के मुख सर्पों के समान थे तो किन्हीं के शूल के समान। किन्हीं के मुख से अत्यन्त क्रोध टपकता था और किन्हीं के मुख पर सौम्यभाव छा रहा था। कुछ विषधर सर्पों के समान जान पड़ते थे। कोई चीर धारण करते थे और किन्हीं-किन्हीं के मुख गाय के नथुनों के समान प्रतीत होते थे। किन्हीं के पेट बहुत मोटे थे और किन्हीं के अत्यन्त कृश। कोई शरीर से बहुत दुबले-पतले थे तो कोई महास्थूलकाय दिखायी देते थे। किन्हीं की गर्दन छोटी और कान बड़े-बड़े थे। नाना प्रकार के सर्पों को उन्होंने आभूषण के रूप में धारण कर रखा था। कोई अपने शरीर में हाथी की खाल लपेटे हुए थे तो कोई काला मृगछाला धारण करते थे। महाराज! किन्हीं के मुख कंधों पर थे तो किन्हीं के पेट में। कोई पीठ में, कोई दाढ़ी में और कोई जांघों में ही मुख धारण करते थे। बहुत से ऐसे भी थे, जिनके मुख पार्श्व भाग में स्थित थे। शरीर के विभिन्न प्रदेशों में मुख धारण करने वाले पार्षदों की संख्या भी कम नहीं थी। भिन्न-भिन्न गणों के अधिपति कीट पतंगोें के समान मुख धारण करत थे। किन्हीं के अनेक और सर्पाकार मुख थे। किन्हीं-किन्हीं के बहुत सी भुजाएं और गर्दनें थे। किन्हीं की बहुसंख्यक भुजाएं नाना प्रकार के वृक्षों के समान जान पड़ती थी। किन्हीं-किन्हीं के मस्तक उन के कटि-प्रदेश में ही दिखायी देते थे। किन्हीं के सर्पाकार मुख थे। कोई नाना प्रकार के गुल्मों और लताओं से अपने को आच्छादित किये हुए थे।

कोई चीर वस्त्र में ही अपने को ढके हुए थे और कोई नाना प्रकार के सुनहरे वस्त्र धारण करते थे। वे नाना प्रकार के वेश, भाँति-भाँति की माला और चन्दन तथा अनेक प्रकार के वस्त्र धारण करते थे। कोई-कोई चमड़े का ही वस्त्र पहनते थे। किन्हीं के मस्तक पर पगड़ी थी तो किन्हीं के सिर पर मुकुट शोभा पाते थे। किन्हीं की गर्दन और अंगकान्ति बड़ी ही सुन्दर थी। कोई किरीट धारण करते और कोई सिर पर पांच शिखाएं रखते थे। किन्हीं के सिर के बाल सुनहरे रंग के थे। कोई दो, कोई तीन और कोई सात शिखाएं रखते थे। कोई माथे पर मोर पंख और कोई मुकुट धारण करते थे। कोई मूंड़, मुड़ाये और कोई जटा बढ़ाये हुए थे। कोई विचित्र माला धारण किये हुए थे और किन्हीं के मुख पर बहुत से रोयें जमे हुए थे। उन सबको लड़ाई-झगड़े में ही रस आता था। वे सदा श्रेष्ठ देवताओं के लिये भी अजेय थे। कोई काले थे, किन्हीं के मुख पर मांस रहित हड्डियों का ढांचा मात्र था। किन्हीं की पीठ बहुत बड़ी थी और पेट भीतर को धंसा हुआ था। किन्हीं की पीठ मोटी और किन्हीं की छोटी थी। किन्हीं के पेट और मूत्रेन्द्रिय दोनों बड़े थे। किन्हीं की भुजाएं विशाल थी तो किन्हीं की बहुत छोटी। कोई छोटे-छोटे अंगों वाले और बौने थे। कोई कुबड़े थे तो किन्हीं-किन्हीं की जांघें बहुत छोटी थी। कोई हाथी के समान कान और गर्दन धारण करते थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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