महाभारत शल्य पर्व अध्याय 45 श्लोक 28-49

पन्चचत्वारिंश (45) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

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महाभारत: शल्य पर्व: पन्चचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 28-49 का हिन्दी अनुवाद

इसी प्रकार देवताओं ने उन्हें देव-शत्रुओं का विनाश करने वाली, अजेय एवं विष्णुरूपणी सेना प्रदान की, जो नैर्ऋतों से भरी हुई थी। उस समय इन्द्र सहित सम्पूर्ण देवताओं, गन्धर्वों, यक्षों, राक्षसों, मुनियों तथा पितरों ने जय-जयकार किया। तत्पश्चात यमराज ने उन्हें दो अनुचर प्रदान किये, जिनके नाम थे- उन्माथ और प्रमाथ। वे दोनों काल के समान महापराक्रमी और महातेजस्वी थे। सुभ्राज और भास्वर जो सूर्य के अनुचर थे, उन्हें प्रतापी सूर्य ने प्रसन्न होकर कार्तिकेय की सेवा में दे दिया। चन्द्रमा ने भी कैलास शिखर के समान श्वेतवर्ण वाले तथा श्वेत माला और श्वेत चन्दन धारण करने वाले दो अनुचर प्रदान किये, जिनके नाम थे- मणि और सुमणिअग्नि देव ने भी अपने पुत्र स्कन्द को ज्वालाजिह तथा ज्योति नामक दो शूर सेवक प्रदान किये, जो शत्रु सेना को मथ डालने वाले थे। अंश ने भी बुद्धिमान स्कन्द को पांच अनुचर प्रदान किये, जिनके नाम इस प्रकार हैं- परिघ, वट, महाबली भीम तथा दहति और दहन। इनमें से दहति और दहन बड़े प्रचण्ड तथा बल पराक्रम की दृष्टि से सम्मानित थे। शत्रुवीरों का संहार करने वाले इन्द्र ने अग्निकुमार स्कन्द को उत्क्रोश और पंचक नामक दो अनुचर प्रदान किये। वे दोनों क्रमशः वज्र और दण्ड धारण करने वाले थे। उन दोनों ने समरांगण में इन्द्र के बहुत से शत्रुओं का संहार कर डाला था। महायशस्वी भगवान विष्णु ने स्कन्द को चक्र, विक्रम और महाबली संक्रम -ये तीन अनुचर दिये। सम्पूर्ण विद्याओं में प्रवीण चिकित्सक चूड़ामणि अश्विनी कुमारों ने प्रसन्न होकर स्कन्द को वर्धन और नन्दन नामक दो सेवक दिये। महायशस्वी धाता ने महात्मा स्कन्द को कुन्द, कुसुम, कुमुद, डम्बर अैर आडम्बर- ये पांच सेवक प्रदान किये। प्रजापति त्वष्टा ने बलवान, बलोन्मत्त, महामायावी और मेघचक्रधारी चक्र और अनुचक्र नामक दो अनुचर स्कन्द की सेवा में उपस्थित किये।

भगवान मित्र ने महात्मा कुमार को सुव्रत और सत्यसंध नामक दो सेवक प्रदान किये। वे दोनों ही तप और विद्या धारण करने वाले तथा महामनस्वी थे। इतना ही नहीं, वे देखने में बड़े ही सुन्दर, वर देने में समर्थ तथा तीनों लोकों में विख्यात थे। विधाता ने कार्तिकेय को महामना सुव्रत और सुकर्मा- ये दो लोक-विख्यात सेवक प्रदान किये। भरतनन्दन! पूषा ने कार्तिकेय को पाणीतक और कालिक नामक दो पार्षद प्रदान किये। वे दोनों ही बड़े भारी मायावी थे। भरश्रेष्ठ! वायु देवता ने कृत्तिका कुमार को महान बलशाली एवं विशाल मुख वाले बल और अतिबल नामक दो सेवक प्रदान किये। सत्यप्रतिज्ञ वरुण ने कृत्तिका नन्दन स्कन्द को यम और अतियम नामक दो महाबली पार्षद दिये, जिनके मुख तिमि नामक महामत्स्य के समान थे। राजन! हिमवान ने अग्निकुमार को महामना सुवर्चा और अतिवर्चा नामक दो पार्षद प्रदान किये। भारत! मेरु ने अग्नि पुत्र स्कन्द को महामना कान्चन और मेघमाली नामक दो अनुचर अर्पित किये। महामना मेरु ने ही अग्नि पुत्र कार्तिकेय को स्थिर और अतिस्थिर नामक दो पार्षद और दिये। वे दोनों महान बल और पराक्रम से सम्पन्न थे। विन्ध्य पर्वत ने भी अग्नि कुमार को दो पार्षद प्रदान किये, जिनके नाम थे- उच्छृंग और अतिश्रृंग। वे दोनों ही बड़े-बड़े पत्थरों की चटटानों द्वारा युद्ध करने में कुशल थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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