महाभारत विराट पर्व अध्याय 48 श्लोक 16-23

अष्टचत्वारिंश (48) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

Prev.png

महाभारत: विराट पर्व: अष्टचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 16-23 का हिन्दी अनुवाद


आत मेरे धनुष से छूटे हुए सर्पों के समान विषैले बाण अर्जुन के शरीर में उसी प्रकार प्रवेश करेंगे, जैसे साँप बाँबी में घुसते हैं। कनेर के फूलों से व्याप्त पर्वत की जैसी शोभा होती है, उसी प्रकार मेरे तेज, सुनहरे पंख वाले, उज्ज्वल और झुकी हुई गाँठ वाले बाणों द्वारा कुन्ती पुत्र अर्जुन को आच्छादित हुआ देखो। मुलिश्रेष्ठ परशुरामजी से मैंने जो अस्त्र प्राप्त किये हैं, उन अस्त्रों और अपने पराक्रम का आश्रय लेकर मैं इन्द्र से भी युद्ध कर सकता हूँ। अर्जुन कीध्वजा के अग्र भाग पर स्थित होने वाला वानर भयंकर गर्जना किया करता है, वह आज ही मेरे बाणों से मारा जाकर पृथ्वी पर गिर जाय।

शत्रु की ध्वजा में निवास करने वाले भूतगण भी मुझसे मारे जाकर जब चारों दिशाओं में भागने लगेंगे, उस समय उनके हाहाकार का शब्द स्वर्गलोक तक पहुँच जायगा। अर्जुन को रथ से गिराकर आज मैं दुर्योधन के हृदय में चिरकाल से चुभे हुए काँटे को जड़ सहित निकाल फेंकूँगा।। पुरुषार्थ साधन में लगे हुए अर्जुन के घोड़े मार दिये जायँगे और वह रथहीन होकर केवल साँप की भाँति फुफकार मारता फिरेगा। कौरव लोग आज उसकी वह अवस्था भी देखें। कौरवों की इच्छा हो तो वे केवल गोधन लेकर यहाँ से चले जायँ अथवा अपने रथों पर बैठे रहकर अर्जुन के साथ मेरा युद्ध देखें।

इस प्रकार श्रीमहाभारत विराट पर्व के अन्तर्गत गौहरण पर्व में उत्तर गोग्रह के समय कर्ण के आत्मप्रशंसापूर्ण वचन सम्बन्धी अड़तालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः