महाभारत विराट पर्व अध्याय 35 श्लोक 17-22

पन्चत्रिंश (35) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: पन्चत्रिंश अध्याय: श्लोक 17-22 का हिन्दी अनुवाद

‘प्रभो! अब चाँदी के समान चमकीले वे यवेत रंग के घोड़े आपके रथ में जोते जायँ और सिंह के चिह्न से सुशोभित सुवर्णमय ऊँचा ध्वज फहरा दिया जाय। ‘वीरवर! आपके हाथ बहुत मजबूत हैं। उनके द्वारा आपके चलाये हुए सोने की पाँख और स्वच्छ नोक वाले बाण शत्रुपक्ष के राजाओं की राह रोककर सूर्यदेव को भी ढक दें।

‘जैसे वज्रपति इन्द्र समस्त असुरों को परास्त कर देते हैं, उसी प्रकार आप युद्ध में सम्पूर्ण कौरवों को जीतकर महान् यश प्राप्त करके पुनः इस नगर में प्रवेश करें। ‘मत्स्यराज के सुयोग्य पुत्र होने के कार आप ही इस राष्ट्र के महान् आश्रय हैं।

जैसे विजयी वीरों में श्रेष्ठ अर्जुन पाण्डवों के उत्तम आश्रय हैं, उसी प्रकार आप भी निश्चय ही इस राज्य के निवासियों की परम गति हैं। हम सभी मत्स्यदेशवासी आज आपको पाकर ही गतिमान् (सनाथ) हैं’।

वैशम्पायनजी कहते हैं- राजन्! उस समय राजकुमार अन्तःपुर में स्त्रियों के बीच में बैठा था। वहीं उस गोपाध्यक्ष ने उससे ये निर्भय बनाने वाली बातें कहीं। अतः वह अपनी प्रशंसा करता हुआ इस प्रकार कहने लगा।


इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्व के अन्तर्गत गोहरणपर्व में उत्तर दिशा की गौओं के अपहरण प्रसंग में गोपवचन विषयक पैंतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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