महाभारत वन पर्व अध्याय 82 श्लोक 112-118

द्वयशीतितम (82) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: द्वयशीतितम अध्याय: श्लोक 112-118 का हिन्दी अनुवाद


वहाँ चमसोद्भेद, शिवोद्भेद और नागोद्भेद तीर्थ में सरस्वती का दर्शन होता है। चमसोद्भेद में स्नान करने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल प्राप्त होता है। शिवोद्भेद में स्नान करके मनुष्य सहस्र गोदान का फल पाता है। नागोद्भेद तीर्थ में स्नान करने से उसे नागलोक की प्राप्ति होती है। राजेन्द्र! शशयान नामक तीर्थ अत्यन्त दुर्लभ है। उसमें जाकर स्नान करे।

महाराज भारत! वहाँ सरस्वती नदी में प्रतिवर्ष कार्तिकी पूर्णिमा को शश (खरगोश) के रूप में छिपे हुए पुष्कर तीर्थ देखे जाते हैं। भरतश्रेष्ठ! नरव्याघ्र! वहाँ स्नान करके मनुष्य सदा चन्द्रमा के समान प्रकाशित होता है। भरतकुलतिलक! उसे सहस्र गोदान का फल भी मिलता है। कुरुनन्दन! वहाँ से कुमारकोटि तीर्थ में जाकर वहाँ नियमपूर्वक स्नान करे और देवता तथा पितरों के पूजन में तत्पर रहे। ऐसा करने से मनुष्य दस हजार गोदान का फल पाता है और अपने कुल का उद्धार कर देता है।

धर्मज्ञ! वहाँ से एकाग्रचित्त हो रुद्रकोटि तीर्थ में जाये। महाराज! रुद्रकोटि वह स्थान है, जहाँ पूर्वकाल में एक करोड़ मुनि बड़े हर्ष में भरकर भगवान् रुद्र के दर्शन की अभिलाषा से आये थे। भारत! ‘भगवान् वृषभध्वज का दर्शन पहले मैं करूंगा, मैं करूंगा’ ऐसा संकल्प करके वे महर्षि वहाँ के लिये प्रस्थित हुए थे। राजन्! तब योगेश्वर भगवान् शिव ने भी योग का आश्रय ले, उन शुद्धात्मा महर्षियों के शोक की शांति के लिये करोड़ों शिवलिंगों की सृष्टि कर दी, जो उन सभी ऋषियों के आगे उपस्थित थे; इससे उन सब ने अलग-अलग भगवान् का दर्शन किया।

राजन्! उन शुद्धचेता मुनियों की उत्तम भक्ति से संतुष्ट हो महादेव जी ने उन्हें वर दिया- 'महर्षियों! आज से तुम्हारे धर्म की उत्तरोत्तर वृद्धि होती रहेगी। नरश्रेष्ठ! उस रुद्रकोटि में स्नान करके शुद्ध हुआ मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और अपने कुल का उद्धार कर देता है। राजेन्द्र! तदनन्तर परम पुण्यमल लोकविख्यात सरस्वती संगमतीर्थ में जाये, जहाँ ब्रह्मा आदि देवता और तपस्या के धनी महर्षि भगवान् केशव की उपासना करते हैं। राजेन्द्र! वहाँ लोग चैत्र शुक्ला चतुर्दशी को विशेष रूप से जाते हैं। पुरुषसिंह! वहाँ स्नान करने से प्रचुर सुवर्ण राशि की प्राप्ति होती है और सब पापों से शुद्धचित्त होकर मनुष्य ब्रह्मलोक को जाता है। परेश्वर! जहाँ ऋषियों के सत्र समाप्त हुए हैं, वहाँ अवसान तीर्थ में जाकर मनुष्य सहस्र गोदान का फल पाता है।


इस प्रकार महाभारत वनपर्व के अन्तर्गत तीर्थयात्रापर्व में पुलस्त्यकयित तीर्थयात्रा विषयक बयासीवां अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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