महाभारत वन पर्व अध्याय 311 श्लोक 18-19

एकादशाधिकत्रिशततम (311) अध्‍याय: वन पर्व (आरणेयपर्व)

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महाभारत: वन पर्व: एकादशाधिकत्रिशततम अध्यायः श्लोक 18-19 का हिन्दी अनुवाद


घोर प्रयत्न करने पर भी वह महामृग उनके हाथ न लगा; सहसा अदृश्य हो गया। मृग को न देखकर वे मनस्वी वीर हतोत्साह और दु:खी हो गये।

तत्पश्चात् उस गहन वन में भूख-प्यास से पीड़ित अंगों वाले पाण्डव एक शीतल छाया वाले बरगद के पास आकर बैठ गये।

उनके बैठ जाने पर नकुल अत्यन्त दु:खी हो अमर्ष में आकर बड़े भाई कुरुनन्दन युधिष्ठिर से इस प्रकार बोले- ‘राजन्! हमारे कुल में कभी आलस्यवश धर्म का लोप नहीं हुआ; अर्थ का भी कभी नाश नहीं हुआ। हमने किसी भी प्राणी की प्रार्थना करने पर कभी उसे कोरा जवाब नहीं दिया-निराश नहीं किया। फिर भी हम धर्मसंकट में कैसे पड़ गये?’


इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत आरणेयपर्व में मृग का अनुसंधान विषयक तीन सौ ग्यारहवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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