महाभारत वन पर्व अध्याय 302 श्लोक 18-21

द्वयधिकत्रिशततम (302) अध्‍याय: वन पर्व (कुण्डलाहरणपर्व)

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महाभारत: वन पर्व: द्वयधिकत्रिशततमोऽध्यायः 18-21 श्लोक का हिन्दी अनुवाद


राजन्! स्वप्न के अन्त में कुछ बोलता हुआ-सा कर्ण जाग उठा।

भारत! जागने पर वक्ताओें में श्रेष्ठ राधानन्दन कर्ण ने स्वप्न का चिन्तन करके शक्ति के लिये इस प्रकार निश्चय किया, ‘यदि शत्रुओं को संताप देने वाले इन्द्र कुण्डल के लिये मेरे पास आ रहे हैं तो मैं शक्ति लेकर ही उन्हें कुण्डल और कवच दूँगा।’

भरतश्रेष्ठ! ऐसा निश्चय करके कर्ण प्रातःकाल उठा और आवश्यक कार्य करके ब्राह्मणों से स्वस्तिवचन कराकर यथासमय संध्योपासन आदि कार्य करने लगा। नृपश्रेष्ठ! फिर उसने विधिपूर्वक दो घड़ी तक जप किया। तदनन्तर जप के अन्त में कर्ण ने भगवान सूर्य से स्वप्न का वृत्तान्त निवेदन किया।

उसने जो कुछ देखा था तथा रात में उन दोनों में जैसी बात हुई थीं, उन सब को कर्ण ने क्रमशः उनसे ठीक-ठीक कह सुनाया। राहु का संहार करने वाले भगवान सूर्यदेव ने यह सब सूनकर कर्ण से मुस्कराते हुए से कहा- ‘तुमने जो कुछ देखा है, वह सब ठीक है’। तब शत्रुओं का संहार करने वाला राधानन्दन कर्ण उस स्वप्न की घटना को यथार्थ जानकर शक्ति प्राप्त करने की ही अभिलाषा ले इन्द्र की प्रतीक्षा करने लगा।


इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत कुण्डलाहरणपर्व में सूर्य-कर्ण संवाद विषयक तीन सौ दोवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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