अशीत्यधिकद्वशततम (280) अध्याय: वन पर्व (रामोपाख्यान पर्व)
महाभारत: वन पर्व: अशीत्यधिकद्वशततम अध्यायः श्लोक 65-74 का हिन्दी अनुवाद
स्वप्न में मुझे यह भी दिखाई दिया है कि भगवान श्रीराम के बाणों से समुद्र सहित सारी पृथ्वी आच्छादित हो गयी है; अतः यह निश्चित है कि तुम्हारे पतिदेव अपने सुयश से समस्त भूमण्डल को परिपूर्ण कर देंगे। इसी तरह मैंने लक्ष्मण को भी देखा है। वे हड्डियों के ढेर पर बैठे हुए मधुमिश्रित खीर खा रहे थे और ऐसा जान पड़ता था, मानो वे समसत दिशाओं को दग्ध कर देना चाहते हैं। विदेहनन्दिनी सीते! इस सपने से यही प्रतीत होता है कि तुम शीघ्र ही अपने स्वामी से मिलकर हर्ष का अनुभव करोगी। भाई लक्ष्मण सहित श्रीरामचन्द्र जी से तुम्हारी अवश्य भेंट होगी; इसमें अब अधिक विलम्ब नहीं है’। त्रिजटा की यह बात सुनकर मृगशावक से नेत्रों वाली सीता को पुनः पतिदेव से मिलने की आशा बँध गयी। इतने में अत्यन्त क्रूर स्वभाव वाली वे भयंकर पिशाचिनियाँ रावण के दरबार से लौट आयीं। आकर उन्होंने देखा, सीता त्रिजटा के साथ पूर्ववत् अपने स्थान पर बैठी है।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत रामोख्यानपर्व में त्रिजटा का सीता को आश्वासन विषयक दो सौ अस्सीवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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