षड्-विंश (26) अध्याय: वन पर्व (अरण्य पर्व)
महाभारत: वन पर्व: षड्-विंश अध्याय: श्लोक 18-22 का हिन्दी अनुवाद
वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर युधिष्ठिर की बढ़ाई करने पर उन सब ब्राह्मणों ने बक का आदर सत्कार किया और उन सब ब्राह्मणों का चित्त प्रसन्न हो गया। द्वैपायन व्यास, नारद, परशुराम, पृथुश्रवा, इन्द्रद्युम्न, भालुकि, कृतचेता, सहस्रपात्, कर्णश्रवा, मुंज, लवणाश्व काश्यप, हारीत, स्थूणकर्ण, अग्निवेश्य, शौनक, कृतवाक, सुवाक, बृहदश्व, ऊर्ध्वरेता, वृषामित्र, सुहोत्र, तथा होत्रवाहन- ये सब ब्रह्मर्षि तथा राजर्षिगण और दूसरे कठोर व्रत का पालन करने वाले बहुत-से ब्राह्मण अजातशत्रु युधिष्ठिर का उसी प्रकार आदर करते थे, जैसे महर्षि लोग देवराज इन्द्र का।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व में अर्जुनाभिगमनपर्व में द्वैतवनप्रवेश विषयक छब्बीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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