महाभारत वन पर्व अध्याय 220 श्लोक 16-20

विंशत्‍यधिकद्विशततम (220) अध्‍याय: वन पर्व (मार्कण्‍डेयसमस्‍या पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: विंशत्‍यधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 16-20 का हिन्दी अनुवाद


इसीलिये यज्ञनिपुण विद्वानों ने यज्ञशाला की बाह्य वेदी पर इन विनायकों के लिये देयभाग रख देने का नियम चालू किया है; क्‍योंकि जहाँ अग्‍नि की स्‍थापना हुई हो, उस स्‍थान के निकट ये विनायक नहीं जाते हैं।

मन्‍त्र द्वारा संस्‍कार करने के पश्‍चात् प्रज्वलित अग्निदेव जिस समय आहुति ग्रहण करते हुए यज्ञ का सम्‍पादन करते हैं, उस समय वे अपने दोनों पंखों (पार्श्ववर्ती शिखाओं) द्वारा उन विनायकों को कष्‍ट पहुँचाते हैं, (इसीलिये वे उनके पास नहीं फटकते)। मन्‍त्रों द्वारा शान्‍त कर देने पर वे विनायक यज्ञ-सम्‍बन्‍धी हविष्‍य का अपहरण नहीं कर पाते हैं।

इस पृथ्‍वी पर जब अग्निहोत्र होने लगता है, उस समय तप (पांचजन्‍य) के ही पुत्र बृहदुक्थ इस भूतल पर स्थित हो श्रेष्‍ठ पुरुषों द्वारा पूजित होते हैं। तप के पुत्र जो रथन्‍तर नामक अग्नि कहे जाते हैं, उनको दी हुई हवि मित्रविन्‍द देवता का भाग है, ऐसा यजुर्वेदी विद्वान् मानते हैं।

महायशस्‍वी तप (पांचजन्‍य) अपने इन सभी पुत्रों के सहित अत्‍यन्‍त प्रसन्न हो आनन्‍दमग्न रहते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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