सप्तवत्यधिकशततम (197) अध्याय: वन पर्व (तीर्थयात्रापर्व )
महाभारत: वन पर्व: सप्तवत्यधिकशततमो अध्याय: श्लोक 24-28 का हिन्दी अनुवाद
कबूतर बोला- राजन्! मैं धूममयी ध्वजा से विभूषित वैश्वानर अग्नि हूँ और उस बाज के रूप में साक्षात् वज्रधारी शचीपति इन्द्र थे। सुरथानन्दन! तुम एक श्रेष्ठ पुरुष हो। हम दोनों तुम्हारी श्रेष्ठता की परीक्षा के लिये यहाँ आये थे। राजन्! तुमने मेरी रक्षा के लिये जो तलवार से काटकर अपना यह मांस दिया है, इसके घाव को मैं अभी अच्छा कर देता हूँ। यहाँ की चमड़ी का रंग सुन्दर और सुनहला हो जायेगा तथा इससे बड़ी पवित्र सुगन्ध फैलती रहेगी, यह तुम्हारा राजचिह्न होगा। तुम्हारे इस दक्षिण पार्श्व से एक पुत्र उत्पन्न होगा, जो इन प्रजाओं का पालक और यशस्वी होने के साथ ही देवर्षियों के अत्यन्त आदर का पात्र होगा। उसका नाम होगा, ‘कपोतरोमा’। राजन्! तुम्हारे द्वारा उत्पन्न किया हुआ वह पुत्र, जिसे तुम भविष्य में प्राप्त करोगे, तुम्हारी जांघ का भेदन करके प्रकट होगा; इसीलिये औद्भिद कहलायेगा। उसके शरीर के रोएं कबूतर के समान होंगे। उसका शरीर सांड़ के समान हष्ट-पुष्ट होगा। तुम देखोगे कि वह सुयश से प्रकाशित हो रहा है। सुरथा के वंशजों में वह सर्वश्रेष्ठ शूरवीर होगा। (इतना कहकर अग्नि देव अन्तर्धान हो गये)
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तगर्त मार्कण्डेयसमास्यापर्व में शिबिचरित्र विषयक एक सौ सत्तानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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