अष्टाधिकशततम (108) अध्याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)
महाभारत: वन पर्व: अष्टाधिकशततमोअध्याय: श्लोक 21-26 का हिन्दी अनुवाद
राजन! देवश्रेष्ठ महेश्वर नीलकण्ठ को छोड़कर तीनों लोकों मे कोई भी मेरा वेग धारण नहीं कर सकता। महाबाहो! तुम तपस्या द्वारा उन्हीं वरदायक भगवान शिव को संतुष्ट करो। स्वर्ग से गिरते समय वे ही मुझे अपने मस्तक पर धारण करेंगे। विश्वभावन भगवान शंकर तपस्या द्वारा आराधना करने पर तुम्हारे पितरों के हित की इच्छा से अवश्य तुम्हारा मनोरथ पूर्ण करेंगे।' राजन! यह सुनकर महाराज भगीरथ कैलाश पर्वत पर गये और वहाँ उन्होंने तीव्र तपस्या करके कुछ समय के बाद भगवान शंकर को प्रसन्न किया। नरेश्वर! गंगाजी की प्रेरणा के अनुसार नरश्रेष्ठ भगीरथ ने अपने पितरों को स्वर्गलोक की प्राप्ति कराने के उदेश्य से महादेव जी से गंगाजी के वेग को धारण करने के लिए वर की याचना की।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत तीर्थयात्रापर्व में लोशमतीर्थयात्रा के प्रसंग में अगस्त्योपाख्यान विषयक एक सौ आठवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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