महाभारत वन पर्व अध्याय 107 श्लोक 23-41

सप्ताधिकशततम (107) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: सप्ताधिकशततम अध्याय: श्लोक 23-41 का हिन्दी अनुवाद


उस बिल के पास पहुँच कर सगरपुत्रों ने कुदालों और फावड़ों से समुद्र को प्रयत्नपूर्वक खोदना आरम्भ किया। एक साथ लगे हुए सगरकुमारों के खोदने पर सब ओर से विदीर्ण होने वाले समुद्र को बड़ी पीड़ा का अनुभव होता था। सगर पुत्रों के हाथों मारे जाते हुए असुर, नाग, राक्षस और नाना प्रकार के जन्तु बड़े जोर से आर्तनाद करते थे। सैकड़ों और हजारों ऐसे प्राणी दिखायी देने लगे, जिनके मस्तक कट गये थे, शरीर छिन्न-भिन्न हो गये थे, चमड़े छिल गये थे तथा हड्डीयों के जोड़ टूट गये थे। इस प्रकार वरुण के निवासभूत समुद्र की खुदाई करते-करते उनका बहुत समय बीत गया, परंतु वह अश्व कहीं दिखायी नहीं दिया। राजन! तदनन्तर क्रोध में भरे हुए सगरपुत्रों ने समुद्र के पूर्वोत्तर प्रदेश में पाताल फोड़कर प्रवेश किया और वहाँ उस यज्ञिय अश्व को पृथ्वी पर विचरते देखा। वहीं तेज की परम उत्तम राशि महात्मा कपिल बैठे थे, जो अपने दिव्य तेज से उसी प्रकार उद्भासित हो रहे थे, जैसे लपटों से अग्नि। राजन! उस अश्व को देखकर उनके शरीर में हर्षजनित रोमांच हो आया। वे काल से प्रेरित हो क्रोध में भरकर महात्मा कपिल का अनादर करके उस अश्व को पकड़ने के लिए दौड़े। महाराज! तब मुनिश्रेष्‍ठ कपिल कुपित हो उठे।

मुनिप्रवर कपिल वे ही भगवान विष्‍णु हैं, जिन्हें वासुदेव कहते हैं। उन महातेजस्वी ने विकराल आंखें करके अपना तेज उन पर छोड़ दिया और मन्दबुद्धि सगरपुत्रों कों जला दिया। उन्हें भस्म हुआ देख महातपस्वी नारद जी राजा सगर के समीप आये और उनसे सब समाचार निवेदित किया। मुनि के मुख से निकले हुए इस घोर वचन को सुनकर राजा सगर दो घड़ी तक अनमने हो महादेव जी के कथन पर विचार करते रहे। पुत्र की मृत्युजनित वेदना से अत्यन्त दु:खी हो स्वयं ही अपने आपको सान्त्वना दे उन्होंने अश्व को ही ढूंढने का विचार किया। भरतश्रेष्‍ठ! तदनन्तर असमंजस के पुत्र अपने पौत्र अंशुमान को बुलाकर यह बात कही– 'तात! मेरे अमित तेजस्वी साठ हजार पुत्र मेरे ही लिये महर्षि‍ कपिल की क्रोधाग्नि में पड़कर नष्‍ट हो गये। अनध! पुरवासियों के हित की रक्षा रखकर धर्म की रक्षा करते हुए मैंने तुम्हारे पिता को भी त्याग दिया है।'

युधिष्ठिर ने पूछा- तपोधन नृपश्रेष्ठ सगर ने किसलिये अपने दुस्त्यज वीर पुत्र का त्याग किया था, यह मुझे बताइये।

लोमश जी ने कहा- राजन! सगर का वह पुत्र जिसे रानी शैब्या ने उत्पन्न किया था, असमंजस के नाम से विख्यात हुआ। वह जहाँ-तहाँ खेलकूद में लगे हुए पुरवासियों के दुर्बल बालकों के समीप सहसा पहूंच जाता और चीखते-चिल्लाते रहने पर भी उसका गला पकड़कर उन्हें नदी में फेंक देता था। तब समस्त पुरवासी भय और शोक में मग्‍न हो राजा सगर के पास आये और हाथ जोड़े खड़े हो इस प्रकार कहने लगे- 'महाराज! आप शत्रुसेना आदि के भय से हमारी रक्षा करने वाले हैं। अत: असमंजस के घोर भय से आप हमारी रक्षा करें।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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