महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 71 श्लोक 19-43

एकसप्‍ततितम (71) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: एकसप्‍ततितम अध्याय: श्लोक 19-43 का हिन्दी अनुवाद


भीष्म तोमर, नाराच और प्रास आदि धारण करने वाले हाथीसवार, घुड़सवार तथा रथारोही योद्धाओं की विशालवाहिनी के साथ किरीटधारी अर्जुन से भिड़ गये। फिर, अवन्तीनरेश काशिराज के साथ, सिन्धुराज जयद्रथ भीमसेन के साथ तथा पुत्रों और मन्त्रियों सहित अजातशत्रु राजा युधिष्ठिर यशस्वी मद्रराज शल्य के साथ युद्ध करने लगे। प्रजानाथ! विकर्ण सहदेव के साथ और चित्रसेन शिखण्डी के साथ भिड़ गये। मत्स्यदेशीय योद्धाओं ने दुर्योधन और शकुनि का सामना किया। द्रुपद, चेकितान और महारथी सात्यकि -ये अश्वत्थामा सहित महामना द्रोण से भिड़ गये। कृपाचार्य और कृतवर्मा- इन दोनों ने धृष्टद्युम्न पर धावा किया। इस प्रकार अपने-अपने घोड़ों को आगे बढ़ाकर तथा हाथी एवं रथों को घुमाकर समस्त सैनिक सब ओर युद्ध करने लगे।

प्रजानाथ! बिना बादल के ही दुःसह बिजलियाँ चमकने लगीं, सम्पूर्ण दिशाएँ धूल से भर गयीं और भयंकर वज्र पात की-सी आवाज के साथ बड़ी-बड़ी उल्काएँ गिरने लगीं। बड़े जोर की आँधी उठ गयी। धूल की वर्षा होने लगी। सेना के द्वारा उड़ायी हुई धूल से आकाश में सूर्यदेव छिप गये। उस समय समस्त प्राणियों पर बड़ा भारी मोह छा गया, क्योंकि वे धूल से तो दबे ही थे, अस्त्रों के समुदाय से भी पीड़ित हो रहे थे। वीरों की भुजाओं से छूटकर सब प्रकार के आवरणों (कवच आदि) का भेदन करने वाले बाणसमूहों के भयानक आघात सब ओर हो रहे थे।

भरतश्रेष्ठ! उत्तम भुजाओं द्वारा ऊपर उठाये हुए नक्षत्रों के समान निर्मल एवं चमकीले अस्त्र आकाश में प्रकाश फैला रहे थे। भरतभूषण! सोने की जाली से ढकी और ऋषभचर्म की बनी हुई विचित्र ढालें सम्पूर्ण दिशाओं में गिर रही थीं। सूर्य के समान चमकीले खड्गों से सब ओर काटकर गिराये जाने वाले शरीर और मस्तक सम्पूर्ण दिशाओं में दृष्टिगोचर हो रहे थे। कितने ही महारथियों के रथों के पहिये, धुरे और भीतर की बैठकें टूट-फूटकर नष्ट हो गयीं, बड़ी-बड़ी ध्वजाएँ खण्डित होकर गिर गयीं, घोडे़ मार दिये गये और वे महारथी स्वयं भी मारे जाकर धरती पर जहाँ-तहाँ गिर पड़े। उस युद्धस्थल में कितने ही घोड़े अस्त्र-शस्त्रों के आघात से घायल होकर अपने रथियों के मारे जाने के बाद भी रथ खींचते हुए भागते और गिर पड़ते थे। भारत! कितने ही उत्तम घोड़ों के शरीर बाणों से आहत होकर क्षत-विक्षत हो गये थे, तो भी रथ के साथ रस्सी में बँधे हुए थे, इसलिये रथ के जूओं को इधर-उधर खींचते रहते थे।

राजन्! कितने ही रथारोही युद्धस्थल में एक ही महाबली गजराज के द्वारा घोड़ों और सारथियों सहित कुचले हुए दिखायी पड़ते थे। समस्त सेनाओं में भीषण मार-काट मची हुई थी और बहुत-से हाथी गन्धयुक्त गजराज के मद की गन्ध सूँघकर उसी के भ्रम से निर्बल हाथी को भी मार गिराने के लिये पकड़ लेते थे। तोमरों सहित प्राणशून्य होकर गिरे हुए महावतों और नाराचों की मार से मरकर गिरने वाले हाथियों से वह रणभूमि आच्छादित हो गयी थी। सैन्यसमूहों के उस भीषण संघर्ष में आगे बढ़ाये हुए बड़े-बड़े हाथियों से टकराकर युद्ध में कितने ही छोटे-छोटे हाथी अंग-भंग हो जाने के कारण सवारों और ध्वजों सहित गिर जाते थे।

महाराज! उस युद्ध में कितने ही हाथियों के द्वारा विशाल सर्पराज समान सूँड़ों से खींचकर फेके हुए रथों के ध्वज और कूबर चूर-चूर होकर गिरते देखे जाते थे। कितने ही दन्तार हाथी रथसमूहों को तोड़-फोड़कर उनमें बैठे हुए रथियों को उनके केश पकड़कर खींच लेते और वृक्ष की शाखा की भाँति उन्हें घुमाकर धरती पर दे मारते थे। इस प्रकार उस युद्ध में उन रथियों की धज्जियाँ उड़ जाती थीं। कितने ही बड़े-बड़े गजराज रथसमूहों में घुसकर युद्ध में उलझे हुए रथों को पकड़ लेते और सब प्रकार के शब्दों का अनुसरण करते हुए सम्पूर्ण दिशाओं में उन रथों को खींचे फिरते थे। इस प्रकार रथों से रथियों को खींचने वाले उन हाथियों का स्वरूप ऐसा जान पड़ता था, मानो वे तालाब में वहाँ उगे हुए कमलों का समूह खींच रहे हों। इस तरह सवारों, पैदलों और ध्वजों सहित महारथियों के शरीरों से वह विशाल युद्धस्थल पट गया था।


इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अंतर्गत भीष्मवधपर्व में संकुलयुद्धविषयक इकहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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