महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 2 श्लोक 20-33

द्वितीय (2) अध्याय: भीष्म पर्व (जम्बूखण्‍डविनिर्माण पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: द्वितीय अध्याय: श्लोक 20-33 का हिन्दी अनुवाद
  • ‘भारत! मैं प्रात: और सायं दोनों संध्‍याओं के समय उदय और अस्त की बेला में सूर्यदेव को प्रतिदिन कबन्धों से घिरा हुआ देखता हूँ। (20)
  • ‘संध्‍या के समय सूर्यदेव को तिरंगे घेरों ने सब ओर से घेर रखा था। उनमें श्‍वेत और लाल रंग के घेरे दोनों किनारों पर थे और मध्‍य में काले रंग का घेरा दिखायी देता था। इन घेरों के साथ बिजलियां भी चमक रही थीं। (21)
  • ‘मुझे दिन और रात का समय ऐसा दिखायी दिया है जिसमें सूर्य, चन्द्रमा और तारे जलते-से जान पड़ते थे। दिन और रात में कोई विशेष अन्तर नहीं दिखायी देता था। यह लक्षण भय लाने वाला होगा। (22)
  • ‘कार्तिक की पूर्णिमा को कमल के समान नीलवर्ग के आकाश में चन्द्रमा प्रभाहीन होने के कारण दृष्टिगोचर नहीं हो पाता था तथा उसकी कान्ति भी अग्नि के समान प्रतीत होती थी। (23)
  • ‘इसका फल यह है कि परिध के समान मोटी बाहुओं वाले बहुत से शूरवीर नरेश तथा राजकुमार मारे जाकर पृथ्वी को आच्छादित करके रणभूमि में शयन करेंगे। (24)
  • ‘सूअर और बिलाव दोनों आकाश में उछल-उछलकर रात में लड़ते और भयानक गर्जना करते हैं। यह बात मुझे प्रतिदिन दिखायी देती है। (25)
  • देवताओं की मूर्तियां कांपती, हंसती, मुंह से खून उगलती, खिन्न होती और गिर पड़ती हैं। (26)
  • ‘राजन! दुन्दुभियां बिना बजाये बज उठती हैं और क्षत्रियों के बड़े-बड़े़ रथ बिना जोते ही चल पड़ते हैं। (27)
  • ‘कोयल, शतपत्र, नीलकण्‍ठ, भास (चील्ह), शुक, सारस तथा मयूर भयंकर बोली बोलते हैं। (28)
  • ‘घोडे़ की पीठ पर बैठे हुए सवार हाथों में ढाल-तलवार लिये चीत्कार कर रहे हैं। अरुणोदय के समय टिड्डियोंके सैकड़ों दल सब ओर फैले दिखायी देते हैं। (29)
  • ‘दोनों संध्‍याएं दिग्दाह से युक्त दिखायी देती हैं। भारत! बादल धूल और मांस की वर्षा करता है। (30)
  • ‘राजन! जो अरुन्धती तीनों लोकों में पतिव्रताओं की सुकुटमणि के रूप में प्रसिद्ध हैं, उन्होंने वसिष्‍ठ को अपने पीछे कर दिया है। (31)
  • ‘महाराज! यह शनैश्वर नामक ग्रह रोहिणी को पीड़ा देता हुआ खड़ा है। चन्द्रमा का चिह्न मिट-सा गया है। इससे सूचित होता है कि भविष्‍य में महान भय प्राप्त होगा। (32)
  • ‘बिना बादल के ही आकाश में अत्यन्त भयंकर, गर्जना सुनायी देती है। रोते हुए वाहनों की आंखों से आंसुओं की बूंदें गिर रही है।' (33)
इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्‍मपर्व के अन्तर्गत जम्बूखण्‍डविनिर्माणपर्व में श्रीवेदव्यास- दर्शनविषयक दूसरा अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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