षोडशाधिकशततम (116) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: षोडशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 65-80 का हिन्दी अनुवाद
राजन! रथियों को गिराकर और सवारों सहित घोड़ों को मारकर उन्होंने रथों के समुदाय को मुण्डित ताड़वन के समान कर दिया। नरेश्वर! समस्त शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ भीष्म ने उस समरांगण में रथों, हाथियों और घोड़ों को मनुष्यों से शून्य कर दिया। राजन! वज्र की गड़गड़ाहट के समान उनके धनुष की प्रत्यन्चा की टंकार ध्वनि सुनकर सब ओर के सैनिक कांपने लगे। मनुजेश्वर! आपके ताऊ द्वारा चलाये हुए बाण कभी भी खाली नहीं जाते थे। भीष्म के धनुष से छूटे हुए सायक मनुष्यों के शरीरों में नहीं अटकते थे। प्रजानाथ! हमने तेज घोड़ों से जुते हुए बहुत से ऐसे रथ देखे, जिनमें कोई मनुष्य नहीं था और वे रथ वायु के समान शीघ्र गति से इधर-उधर खींचकर ले जाये जा रहे थे। वहाँ चेदि, काशि और करूष देशों के चौदह हजार महारथी मौजूद थे, जिनकी बड़ी ख्याति थी, जो कुलीन होने के साथ ही पाण्डवों के लिये प्राणों का परित्याग करने को उद्यत थे। वे युद्ध से पीठ न दिखाने वाले, शौर्य सम्पन्न तथा सुवर्णमय ध्वज धारण करने वाले थे। वे सब के सब युद्ध में मुंह फैलाये हुए काल के समान भीष्म के पास पहुँचकर घोड़े, रथ और हाथियों सहित परलोक पथिक हो गये। राजन! उस समय सोमकों में एक भी महारथी ऐसा नहीं था, युद्धभूमि में भीष्म के पास पहुँचकर अपने मन में जीवन रक्षा की आशा रखता हो। उस समय लोगों ने भीष्म का अदभुत पराक्रम देखकर यह मान लिया कि युद्ध के मैदान में जितने योद्धा उपस्थित हैं, वे सब यमराज के लोक में गये हुए के ही समान हैं। उस समय श्रीकृष्ण जिनके सारथी थे और श्वेत घोडे़ जिनके रथ में जुते हुए थे, उन पाण्डुनन्दन वीर अर्जुन को तथा अमित तेजस्वी पांचालराज पुत्र शिखण्डी को छोड़कर दूसरा कोई महारथी ऐसा नहीं था, जो समरांगण में भीष्म के सामने जाने का साहस करता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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