पच्चाधिकशततम (105) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: पच्चाधिकशततम अध्याय: श्लोक 16-35 का हिन्दी अनुवाद
भरतश्रेष्ठ! तब अपनी सेना पराजित हुआ देख दुर्योधन ने दीन होकर मद्रराज शल्य से इस प्रकार कहा- 'महाबाहो! ये ज्येष्ठ पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर, नकुल और सहदेव को साथ लेकर रणभूमि में आप लोगों के देखते-देखते मेरी सेना को खदेड़ रहे हैं। प्रभो! महाबाहों! जैसे तटप्रान्त समुद्र को आगे बढ़ने से रोकता है, उसी प्रकार आप भी युधिष्ठिर को आगे बढ़ने से रोकिये; क्योंकि आपका बल और पराक्रम अत्यन्त असह सुना जाता है। राजन! आपके पुत्र की यह बात सुनकर प्रतापी राजा शल्य रथसमूह के साथ उसी स्थान पर गये, जहाँ राजा युधिष्ठिर विद्यमान थे। उस समय सहसा अपनी ओर आती हुई राजा शल्य की उस विशालवाहिनी तथा स्वयं मद्रराज को भी पाण्डुपुत्र महारथी धर्मराज युधिष्ठिर ने महान जल-प्रवाह के समान समरभूमि में रोक दिया। उन्होंने शल्य की छाती मे तुरंत ही दस बाण मारे तथा नकुल और सहदेव ने भी सीधे जाने वाले सात बाणों द्वारा उन्हें घायल कर दिया। तब मद्रराज शल्य ने भी उनको तीन-तीन बाणों से घायल कर दिया। फिर युधिष्ठिर को उन्होंने साठ तीखे बाण मारे। इसके बाद दो दो बाणों से उन्होंने उत्तम कुल में उत्पन्न माद्रीकुमारों को घायल किया तथा अनेक बाणों द्वारा राजा युधिष्ठिर को भी पुनः चोट पहुँचायी। तब शत्रुविजयी महाबाहु भीमसेन समरभूमि में राजा युधिष्ठिर को मृत्यु के मुख में पड़े हुए के समान मद्रराज के रथ के समीप पहुँचा हुआ देखकर युद्ध के लिये वहाँ आ पहुँचे। भीमसेन ने आते ही पूर्णतः लोहे के बने हुए और मर्मस्थानों को विदीर्ण करने में समर्थ तीखे नाराचों से मद्रराज शल्य को गहरी चोट पहुँचायी। तब भीष्म और द्रोणाचार्य दोनों महारथी विशाल सेना के साथ अनायास ही बाणों की वर्षा करते हुए वहाँ राजा शल्य की रक्षा के लिये आ पहुँचे। तदनन्तर जब सूर्यदेव पश्चिम दिशा का आश्रय लेकर अस्ताचल को जा रहे थे, उसी समय दोनों सेनाओं में अत्यन्त दारुण महाघोर युद्ध आरम्भ हुआ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवधपर्व में एक सौ पाँचवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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