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महाभारत: द्रोण पर्व: द्वात्रिंश अध्याय: श्लोक 36-53 का हिन्दी अनुवाद
- तदनन्तर अपनी भुजाओं से सुशोभित होने वाले पाण्डव सेनापति की आज्ञा का पालन करने के लिये वहाँ द्रोणाचार्य के रथ पर प्रहार करते हुए उसी प्रकार टूट पड़े, जैसे बहुत-से हंस किसी सरोवर पर सब ओर से उड़कर आते हैं। (36)
- उस समय दुर्धर्ष वीर द्रोणाचार्य के रथ के समीप सब ओर से यही भयानक आवाज आने लगी कि 'दौड़ो, पकड़ो और निर्भय होकर शत्रुओं को काट डालो।' (37)
- तब द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा, राजा जयद्रथ, अवंती के राजकुमार विन्द और अनुविन्द तथा राजा शल्य ने मिलकर इन आक्रमणकारियों को रोका। (38)
- वे पाण्डवों सहित पांचालवीर आर्यधर्म के अनुसार विजय के लिये प्रयत्नशील थे। उन्हें रोकना या पराजित करना बहुत कठिन था। वे बाणों से पीड़ित होने पर द्रोणाचार्य को छोड़ न सके। (39)
- यह देख अत्यन्त क्रोध में भरे हुए द्रोणाचार्य ने सैकड़ों बाणों की वर्षा करके चेदि, पांचाल तथा पाण्डव योद्धाओं का महान संहार आरम्भ किया। (40)
- आर्य! उनके धनुष की प्रत्यंचा का गम्भीर घोष सम्पूर्ण दिशाओं में सुनायी देता था। वह वज्र की गर्जना के समान घोर शब्द बहुसंख्यक मनुष्यों को भयभीत कर रहा था। (41)
- इसी समय अर्जुन बहुत-से संशप्तकों पर विजय प्राप्त करके उस स्थान पर आये, जहाँ आचार्य द्रोण पाण्डव-सैनिकों का मर्दन कर रहे थे। (42)
- संशप्तक योद्धा महान सरोवर के समान थे, बाणों के समूह ही उनके जल-प्रवाह थे, धनुष ही उनमें उठी हुई बड़ी-बड़ी भँवरों के समान जान पड़ते थे तथा प्रवाहित होने वाला रक्त ही उन सरोवरों का जल था। अर्जुन संशप्तकों का वध करके उन महान सरोवरों के पार होकर वहाँ आते दिखायी दिये थे। (43)
- सूर्य के समान तेजस्वी एवं यशस्वी के चिह्न स्वरूप वानरध्वज को हमने दूर से ही देखा, जो अपने दिव्य तेज से उद्भासित हो रहा था। (44)
- वे पाण्डुवंश के प्रलयकालीन सूर्य अपनी अस्त्रमयी किरणों से उस संशप्तकरूपी समुद्र को सोखकर कौरव-सैनिकों को भी संतप्त करने लगे। (45)
- जैसे प्रलयकाल में प्रकट हुई अग्नि सम्पूर्ण भूतों को दग्ध कर देती हैं, उसी प्रकार अर्जुन ने अपने अस्त्र–शस्त्रों के तेज से समस्त कौरव-सैनिकों को जलाना आरम्भ किया। (46)
- हाथी, घोड़े तथा रथ पर आरुढ़ होकर युद्ध करने वाले बहुत-से योद्धा अर्जुन के सहस्त्रों बाण-समूहों से आहत एवं पीड़ित हो बाल खोले हुए पृथ्वी पर गिर पड़े। (47)
- कोई आर्तनाद करने लगे, कोई नष्ट हो गये, कोई अर्जुन के बाणों से मारे जाकर प्राणशून्य हो पृथ्वी पर गिर पड़े। (48)
- उन योद्धाओं में से जो लोग रथ से कूद पड़े थे या धरती पर गिर गये थे अथवा युद्ध से विमुख होकर भाग चले थे, उन सबको एक वीर सैनिक के लिये निश्चित नियम का निरन्तर स्मरण रखते हुए अर्जुन ने नहीं मारा। (49)
- कौरव-सैनिकों के रथ टूट-फूटकर बिखर गये। उनकी विचित्र अवस्था हो गयी। वे प्राय: युद्ध से विमुख हो गये और 'हा कर्ण, हा कर्ण' कहकर पुकारने लगे। (50)
- तब अधिरथपुत्र कर्ण ने उन शरणार्थी सैनिकों की करुण पुकार सुनकर 'डरो मत' इस प्रकार उन्हें आश्वासन देकर अर्जुन का सामना करने के लिये प्रस्थान किया। (51)
- उस समय अस्त्रवेत्ताओं में श्रेष्ठ, भरतवंशियों के श्रेष्ठ महारथी तथा सम्पूर्ण भारतीय सेना का हर्ष बढ़ाने वाले कर्णने आग्नेयास्त्र प्रकट किया। (52)
- प्रज्वलित बाण-समूह तथा देदीप्यमान धनुष धारण करने वाले कर्ण के उन बाण-समूहों को अर्जुन ने अपने बाणों के समुदाय द्वारा छिन्न-भिन्न कर दिया। (53)
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