चतुर्दश (14) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)
महाभारत: द्रोण पर्व: चतुर्दश अध्याय: श्लोक 37-57 का हिन्दी अनुवाद
दूसरी ओर सेनापति धृष्टद्युम्न ने त्रिगर्तराज सुशर्मा को उसके मर्मस्थानों में अत्यन्त चोट पहुँचायी। यह देख सुशर्मा ने भी तोमर द्वारा धृष्टद्युम्न के गले की हँसली पर प्रहार किया। (37)
समरभूमि मे महापराक्रमी मत्स्यदेशीय वीरों के साथ विराट ने विकर्तनपुत्र कर्ण को रोका। वह अद्भुत-सी बात थी। (38)
वहाँ सूतपुत्र कर्ण का भयंकर पुरुषार्थ प्रकट हुआ। उसने झुकी हुई गाँठ वाले बाणों द्वारा उनकी समस्त सेना की प्रगति रोक दी। (39)
महाराज! तदनन्तर राजा द्रुपद स्वयं जाकर भगदत्त से भिड़ गये। महाराज! फिर उन दोनों में विचित्र-सा युद्ध होने लगा। (40)
पुरुषश्रेष्ठ भगदत्त ने झुकी हुई गाँठ वाले बाणों से राजा द्रुपद को उनके सारथि, रथ और ध्वज सहित बींध डाला। (41)
यह देख द्रुपद ने कुपित हो शीघ्र ही झुकी हुई गाँठ वाले बाण के द्वारा महारथी भगदत्त्त की छाती में प्रहार किया। (42)
भूरिश्रवा और शिखण्डी- ये दोनों संसार के श्रेष्ठ योद्धा और अस्त्रविद्या के विशेषज्ञ थे, उन दोनों ने सम्पूर्ण भूतों को त्रास देने वाला युद्ध किया। (43)
राजन! पराक्रमी भूरिश्रवा ने रणक्षेत्र में द्रुपदपुत्र महारथी शिखण्डी को सायक समूहों की भारी वर्षा करके आच्छादित कर दिया। (44)
प्रजानाथ! भरतनन्दन! तब क्रोध में भरे हुए शिखण्डी ने नब्बे बाण भरकर सोमदत्तकुमार भूरिश्रवा को कम्पित कर दिया। (45)
भयंकर कर्म करने वाले राक्षस घटोत्कच और अलम्बुष ये दोनों एक दूसरे को जीतने की इच्छा से अत्यन्त अद्भुत युद्ध करने लगे। (46)
वे घंमड मे भरे हुए निशाचर सैकड़ों मायाओं की सृष्टि करते और माया द्वारा ही एक-दूसरे को परास्त करना चाहते थे। वे लोगों को अत्यन्त आश्चर्य में डालते हुए अदृश्य भाव से विचर रहे थे। (47)
चेकितानअनुविन्द के साथ अत्यन्त भयंकर युद्ध करने लगे, मानो देवासुर- संग्राम मे महाबली बल और इन्द्र लड़ रहे हों। (48)
राजन! तदनन्तर विधिपूर्वक सजाये हुए चंचल घोड़ों वाले रथ पर आरूढ़ हो गर्जना करते हुए राजा पौरव ने सुभद्राकुमार अभिमन्यु पर आक्रमण किया। (50)
तब शत्रुओं का दमन और युद्ध की अभिलाषा करने वाले महाबली अभिमन्यु भी तुरंत सामने आया और उनके साथ महान युद्ध करने लगा। (51)
पौरव ने सुभद्राकुमार पर बाण समूहों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। यह देख अर्जुनपुत्र अभिमन्यु ने उनके ध्वज, छत्र, और धनुष को काटकर धरती पर गिरा दिया। (52)
फिर अन्य सात शीघ्रगामी बाणों द्वारा पौरव को घायल करके अभिमन्यु ने पाँच बाणों से उनके घोड़ों और सारथि को भी क्षत-विक्षत कर दिया। (53)
तत्पश्चात अपनी सेना का हर्ष बढ़ाते और बारंबार सिंह के समान गर्जना करते हुए अर्जुनकुमार अभिमन्यु ने तुरंत ही एक ऐसा बाण हाथ में लिया, जो राजा पौरव का अन्त कर डालने में समर्थ था। (54)
उस भयानक दिखायी देने वाले सायक को धनुष पर चढ़ाया हुआ जान कृतवर्मा ने दो बाणों द्वारा अभिमन्यु के सायक सहित धनुष को काट डाला। (55)
तब शत्रुवीरों का संहार करने वाले सुभद्राकुमार ने उस कटे हुए धनुष को फेंककर चमचमाती हुई तलवार खींच ली और ढाल हाथ में ले ली। (56)
उसने अपनी शक्ति का परिचय देते हुए सुशिक्षित हाथों वाले पुरुष की भाँति अनेक ताराओं के चिह्नों से युक्त ढाल के साथ अपनी तलवार को घुमाते और अनेक पैंतरे दिखाते हुए रणभूमि में विचरना आरम्भ किया। (57)