महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 107 श्लोक 23-38

सप्‍ताधिकशततम (107) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: सप्‍ताधिकशततम अध्याय: श्लोक 23-38 का हिन्दी अनुवाद

फिर दूसरे पानीदार एवं तीखे भल्‍ले से उसके सारथि के चमकीले कुण्‍डल वाले मस्‍तक को धड़ से काट गिराया। तत्पश्चात सहदेव ने तीखे क्षुरप्र से समरागंण में दुर्मख के विशाल धनुष को काटकर उसे भी पांच बाणों से घायल कर दिया। राजन! भरतनन्‍दन! तब दुर्मुख दुखी मन से उस अश्वहीन रथ को त्‍यागकर निरमित्र के रथ पर जा चढ़ा। इससे शत्रुवीरों का संहार करने वाले सहदेव कुपित हो उठे और उन्‍होंने उस महासमर में सेना के बीचों-बीच एक भल्‍ल से निरमित्र को मार डाला। त्रिगर्त राज का पुत्र राजा निरमित्र अपने वियोग से आपकी सेना को व्‍यथित करता हुआ रथ की बैठक से नीचे गिर पड़ा। जैसे पूर्वकाल मे दशरथ नन्‍दन भगवान श्रीराम महाबली खर का वध करके सुशोभित हुए थे, उसी प्रकार महाबाहु सहदेव निरमित्र को मारकर शोभा पा रहे थे। नरेश्रवर! महारथी राजकुमार निरमित्र को मारा गया देख त्रिगर्तों के दल में महान हाहाकार मच गया। राजन! नकुल ने विशाल नेत्रों वाले आपके पुत्र विकर्ण को दो ही घड़ी में पराजित कर दिया; यह अद्भुत–सी बात हुई। व्‍याघ्रदत्त ने झुकी हुई गांठवाले बाणों द्वारा सेना के मध्‍यभाग में घोड़ों, सारथि और ध्‍वज सहित सात्‍यकि को अदृशय कर दिया। तब शूरवीर शिनिनन्‍दन सात्‍यकि ने सिद्धहस्‍त पुरुष की भाँति उन बाणों का निवारण करके अपने बाणों द्वारा घोड़ों, सारथि और ध्‍वज सहित व्‍याघ्रदत्त को मार गिराया।

प्रभो! मगध नरेश के पुत्र राजकुमार व्‍याघ्रदत्त के मारे जाने पर मगध नरेश के वीरों ने सब ओर से प्रयत्‍नशील होकर युयुधान पर धावा किया। वे शूरवीर मागघ सैनिक बहुत से बाणों, सहस्‍त्रों तोमरों, भिन्दिपालों, प्रासों, मुद्ररों और मूसलों का प्रहार करते हुए समरागंण में रणदुर्जय सात्‍यकि के साथ युद्ध करने लगे। बलवान युद्ध दुर्मद पुरुष प्रवर सात्‍यकि ने हंसते हुए ही उन सबको अधिक कष्‍ट उठाये बिना ही परास्‍त कर दिया। प्रभो! मरने से बचे हुए मागध सैनिकों को चारों ओर भागते देख सात्‍यकि के बाणों से पीड़ित हुई आपकी सेना का व्‍यूह भंग हो गया। इस प्रकार मधुवंश के श्रेष्‍ठ वीर महायशस्‍वी सात्‍यकि रणक्षेत्र में आपकी सेना का विनाश करके अपने उत्‍तम धनुष को हिलाते हुए बड़ी शोभा पा रहे थे। राजन! महामना महाबाहु सात्‍यकि के द्वारा डरायी गयी और तितर-बितर की हुई आपकी सेना फिर युद्ध के लिये सामने नहीं आयी। तब अत्‍यन्‍त क्रोध में भरे हुए द्रोणाचार्य ने सहसा आंखें घुमाकर सत्यकर्मा सात्‍यकि पर स्‍वयं ही आक्रमण किया।

इस प्रकार श्री महाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तगर्त जयद्रथव पर्व में संकुल युद्ध विषयक एक सौ सातवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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