महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 200 श्लोक 93-114

द्विशततम (200) अध्याय: द्रोण पर्व (नारायणास्‍त्रमोक्ष पर्व)

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महाभारत: द्रोणपर्व: द्विशततम अध्याय: श्लोक 93-114 का हिन्दी अनुवाद

इसी तरह अश्वत्‍थामा के छोड़े हुए झुकी हुई गाँठवाले लाखों बाणों से भीमसेन भी तत्‍काल ढक गये। महाराज! संग्राम में शोभा पाने वाले अश्वत्‍थामा द्वारा समरभूमि में ढके जाने पर भी भीमसेन को तनिक भी व्‍यथा नहीं हुई, वह अद्भुत सी बात थी। तदनन्‍तर महाबाहु भीमसेन ने सुवर्णभूषित एवं यमदण्‍ड के समान भयंकर दस तीखे नाराच अश्वत्‍थामा पर चलाये। माननीय नरेश! जैसे सूर्य तुरंत ही बाँबी में घुस जाते हैं, उसी प्रकार वे बाण द्रोणपुत्र के गले की हँसली को छेदकर भीतर समा गये। महात्‍मा पाण्‍डु पुत्र के बाणों से अत्‍यन्‍त घायल हुए अश्वत्‍थामा ने ध्‍वज दण्‍ड थामकर नेत्र बंद कर लिये।

नरेश्‍वर! दो ही घड़ी में पुनः सचेत हो खून से लथपथ हुए अश्वत्‍थामा ने उस समरांगण में अत्‍यन्‍त क्रोध प्रकट किया। महामना पाण्‍डु पुत्र ने उसे गहरी चोट पहुँचायी थी। अतः महाबाहु अश्वत्‍थामा ने भीमसेन के रथ पर ही बड़े वेग से आक्रमण किया। भारत! उसने धनुष को कान तक खींचकर प्रचण्‍ड तेज से युक्‍त और विषैले सर्पो के समान भयंकर सौ बाण भीमसेन पर चलाये। युद्ध की स्‍पृहा रखने वाले पाण्‍डुकुमार भीमसेन भी उसके इस पराक्रम की कोई परवा न करते हुए तुरन्‍त ही उस पर भयंकर बाणों की वर्षा प्रारम्‍भ कर दी। महाराज! तब अश्वत्‍थामा ने कुपित हो बाणों द्वारा भीमसेन के धनुष को काटकर उन पाण्‍डु पुत्र की छाती में पैने बाणों का प्रहार किया। तब अमर्ष में भरे हुए भीमसेन ने दूसरा धनुष लेकर युद्ध स्‍थल में पाँच पैने बाणों से द्रोण पुत्र को घायल कर दिया। वे दोनों क्रोध से लाल आँखें करके बरसात के दो बादलों के समान बाणसमूहों की वर्षा करते हुए एक दूसरे को आच्‍छादित करने लगे। फिर ताल ठोंकने की भयंकर आवाज से परस्‍पर त्रास उत्‍पन्‍न करते हुए वे दोनों योद्धा बड़े रोष से युद्ध करने लगे। दोनों ही एक दूसरे के प्रहार का प्रतीकार करना चाहते थे।


तत्‍पश्‍चात सुवर्ण भूषित विशाल धनुष को खींचकर निकट से बाणों की वर्षा करते हुए भीमसेन की ओर अश्वत्‍थामा ने देखा। वह शरद ऋतु के मध्‍याह काल में प्रचण्‍ड किरणों वाले सूर्यदेव के समान प्रकाशित हो रहा था। वह कब बाण लेता, कब उन्‍हें धनुष पर रखता, कब प्रत्‍यञ्चा खींचता और कब उन्‍हें छोड़ता था तथा इन कार्यो में कितना अन्‍तर पड़ता था, यह सब योद्धा लोग देख नहीं पाते थे। महाराज! बाण छोड़ते समय अश्वत्‍थामा का धनुष अलात चक्र के समान मण्‍डलाकार दिखायी देता था। उसके धनुष से छूटे हुए सैकड़ों और हजारों बाण आकाश में टिड्डी दलों के समान दिखायी देते थे। अश्वत्‍थामा के छोड़े हुए सुवर्णभूषित भयंकर बाण भीमसेन के रथ पर लगातार गिरने लगे। भारत! वहाँ हम लोगो ने भीमसेन का अद्भुत पराक्रम, बल, वीर्य, प्रभाव और व्‍यवसाय देखा। वर्षाकाल में मेघ से होने वाली अत्‍यन्‍त घोर जलवृष्टि के समान चारों ओर से होने वाली अश्वत्‍थामा की उस बाण वर्षा पर विचार करते हुए भंयकर पराक्रमी भीमसेन ने द्रोणपुत्र के वध की इच्‍छा की और वे बरसात के बादलों के समान बाणेां की बौछार करने लगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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