द्विशततम (200) अध्याय: द्रोण पर्व (नारायणास्त्रमोक्ष पर्व)
महाभारत: द्रोणपर्व: द्विशततम अध्याय: श्लोक 77-92 का हिन्दी अनुवाद
इसके बाद द्रोण पुत्र ने सात तीखे बाणों से पौरव को पीड़ित कर दिया। फिर तीन बाणों से मालव नरेश को, एक से अर्जुन को और छः बाणों द्वारा भीमसेन को घायल कर दिया। राजन! तत्पश्चात उन सब महारथियों ने एक साथ और अलग-अलग भी शिला पर तेज किये हुए सुवर्णमय पंखवाले बाणों द्वारा द्रोण कुमार को घायल करना आरम्भ किया। चेदिदेश के युवराज ने बीस, अर्जुन ने आठ तथा अन्य सब लोगों ने तीन तीन बाणों द्वारा द्रोण पुत्र को बींध डाला। तदन्तर द्रोण पुत्र ने छः बाणों से अर्जुन को, दस बाणों द्वारा भगवान श्रीकृष्ण को, पाँच से भीम को, चार से चेदिदेश के युवराज को तथा दो-दो बाणों द्वारा क्रमशः मालव नरेश तथा पौरव को घायल कर दिया। इतना ही नहीं, भीमसेन के सारथि को छः तथा उनके धनुष और ध्वज को दो बाणों से बींधकर पुनः बाणों की वर्षा द्वारा अर्जुन को घायल करके अश्वत्थामा ने घोर सिंहनाद किया। द्रोण कुमार उन पानीदार धारवाले तीखे बाणों को आगे और पीछे भी चला रहा था। उसके उन भयानक बाणों से पृथ्वी, आकाश, अन्तरिक्ष, दिशाएँ और विदिशाएँ भी आच्छादित हो गयी थी। उस युद्ध में इन्द्र के समान पराक्रमी एवं प्रचण्ड तेजस्वी अश्वत्थामा ने अपने रथ के निकट आये हुए मालवराज सुदर्शन की इन्द्रध्वज के तुल्य प्रकाशित होने वाली दोनों भुजाओं तथा मस्तक को तीन बाणों द्वारा एक साथ ही काट डाला। फिर उसने पौरव को रथ शक्ति से घायल करके अपने बाणों द्वारा उनके रथ के तिल के बराबर-बराबर टुकड़े कर डाले और सुन्दर चन्दन चर्चित उनकी दोनों भुजाओं को काटकर एक भल्ल के द्वारा उनके मस्तक को भी धड़ से अलग कर दिया। तत्पश्चात शीघ्रता करने वाले अश्वत्थामा ने प्रज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी बाणों द्वारा नीलकमल की माला के समान कान्तिवाले नवयुवक चेदिदेशीय युवराज को हठपूर्वक घायल करके उन्हें घोड़ों और सारथि सहित मौत के हवाले कर दिया। मालवनरेश सुदर्शन, पुरूदेश के अधिपति वृद्धक्षत्र तथा चेदिदेश के युवराज को अपनी आँखों के सामने द्रोणपुत्र के हाथ से मारा गया देख पाण्डु कुमार महाबाहु भीमसेन को बड़ा भारी क्रोध हुआ। फिर तो शत्रुओं को संताप देने वाले भीमसेन ने क्रोध में भरे हुए विषधर सर्पों के समान सैकड़ों तीखे बाणों द्वारा समरांगण में द्रोणपुत्रअश्वत्थामा को आच्छादित कर दिया। तब महातेजस्वी अमर्षशील द्रोण कुमार ने उस बाण वर्षा को नष्ट करके भीमसेन को पैने बाणों से बींध डाला। यह देख महाबली महाबाहु भीमसेन ने युद्धस्थल में एक क्षुरप्र से अश्वत्थामा का धनुष काटकर पंखदार बाण से उसको भी घायल कर दिया। इसके बाद महामनस्वी द्रोणपुत्र ने उस कटे हुए धनुष को फेंक कर दूसरा धनुष ले लिया और भीमसेन को अनेक बाण मारे। अश्वत्थामा और भीमसेन दोनों वीर महान बलवान एवं पराक्रमी थे। वे समरभूमि में वर्षा करने वाले दो बादलों के समान परस्पर बाणों की बौछार करने लगे। जैसे मेघों की घटाएँ सूर्य को ढक लेती हैं, उसी प्रकार भीमसेन के नाम से अंकित और सान पर चढाकर तेज किये हुए सुनहरी पांखवाले बाणों ने द्रोणपुत्र को आच्छादित कर दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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