महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 188 श्लोक 40-54

अष्टाशीत्यधिकशततम (188) अध्याय: द्रोण पर्व (द्रोणवध पर्व)

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महाभारत: द्रोणपर्व: अष्टाशीत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 40-54 का हिन्दी अनुवाद

जब दिव्यास्त्रों के प्रयोग होने लगे और उनके तेज से दसों दिशाएँ प्रकाशित हो उठीं, उस समय आकाश में एकत्र हुए सिद्ध और ऋषि इस प्रकार वार्तालाप करने लगे- ‘यह युद्ध न तो मनुष्यों का है, न असुरों का, न राक्षसों का है और न देवताओं एवं गन्धर्वों का ही। निश्चय ही यह परम उत्तम ब्राह्य युद्ध है। ऐसा विचित्र एवं आश्चर्यजनक संग्राम हम लोगों ने न तो कभी देखा था और न सुना ही था। ‘आचार्य द्रोण पाण्डु पुत्र अर्जुन से बढ़कर हैं और पाण्डु पुत्र अर्जुन भी आचार्य द्रोण से बढ़कर हैं। इन दोनों में कितना अन्तर है, इसे दूसरा कोई नहीं देख सकता। ‘यदि भगवान शंकर अपने दो रूप बनाकर स्वयं ही अपने साथ युद्ध करें तो उसी युद्ध से इनकी उपमा दी जा सकती है, और कहीं इन दोनों की समता नहीं है। ‘आचार्य द्रोण में सारा ज्ञान एकत्र संचित है, परंतु पाण्डु पुत्र अर्जुन में ज्ञान के साथ-साथ योग भी है। इसी प्रकार आचार्य द्रोण में सारा शौर्य एक स्थान पर आ गया है, परंतु पाण्डु नन्दन अर्जुन में शौर्य के साथ बल भी है। ‘ये दोनों महाधनुर्धर वीर युद्ध में दूसरे किन्हीं योद्धाओं के द्वारा नहीं मारे जा सकते। परंतु यदि ये दोनों चाहें तो देवताओं सहित सम्पूर्ण जगत का विनाश कर सकते हैं’। महाराज! उन दोनों पुरुषप्रवर वीरों को देखकर आकाश में छिपे हुए तथा प्रत्यक्ष दिखायी देने वाले प्राणी भी सब ओर यही बातें कह रहे थे।

तत्पश्चात परम बुद्धिमान द्रोणाचार्य ने रणभूमि में अर्जुन को तथा आकाशवर्ती अदृश्य प्राणियों का संताप देते हुए ब्रह्मास्त्र प्रकट किया। फिर तो पर्वत, वन और वृक्षों सहित धरती डोलने लगी, आँधी उठ गयी और समुद्रों में ज्वार आ गया। महामना द्रोण के द्वारा ब्रह्मास्त्र के उठाये जाते ही कौरवों और पाण्डवों की सेनाओं पर तथा समस्त प्राणियों में बड़ा भारी आतंक छा गया। राजेन्द्र! तब अर्जुन ने भी बिना किसी घबराहट के ब्रह्मास्त्र से ही द्रोणाचार्य के उस अस्त्र को दबा दिया, फिर सारा उपद्रव शान्त हो गया। जब द्रोणाचार्य और अर्जुन में से कोई भी किसी को परास्त न कर सका, तब सामूहिक युद्ध के द्वारा उस संग्राम को व्यापक बना दिया गया। प्रजानाथ! रणभूमि में द्रोणाचार्य और अर्जुन में घमासान युद्ध छिड़ जाने पर फिर किसी को कुछ सूझ नहीं रहा था।

द्रोणाचार्य ने युद्ध स्थल में अर्जुन को छोड़कर पांचालों पर धावा किया और अर्जुन ने भी वहाँ द्रोणाचार्य का मुकाबला छोड़कर कौरव सैनिकों को वेगपूर्वक खदेड़ना आरम्भ किया। राजन! उस महासमर में उन दोनों ने अपने बाण समूहों द्वारा सब कुछ अन्धकार से आच्छन्न कर दिया। वह तुमुल युद्ध सम्पूर्ण जगत के लिये भयदायक प्रतीत हो रहा था।। आकाश में इस प्रकार बाणों का जाल बिछ गया, मानो वहाँ मेघों की घटा घिर आयी हो। इससे वहाँ उस समय कोई आकाशचारी पक्षी भी कहीं उड़कर न जा सका।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत द्रोणवधपर्व में घमासान युद्ध विषयक एक सौ अटठासीवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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