महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 170 श्लोक 21-43

सप्‍तत्‍यधिकशततम (170) अध्याय: द्रोण पर्व (घटोत्कचवध पर्व)

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महाभारत: द्रोणपर्व: सप्तत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 21-43 का हिन्दी अनुवाद


तब धृष्टद्युम्न ने रणभूमि में सोने के पंख वाले, शिला पर स्वच्छ किये हुए, तीन तीखे एवं प्राणान्तकारी बाणों द्वारा द्रुमसेन को घायल कर दिया। फिर दूसरे भल्ल द्वारा उस पराक्रमी वीर ने द्रुमसेन के सुवर्णनिर्मित कान्तिमान कुण्डलों द्वारा मण्डित मस्तक को धड़ से काट गिराया। रणभूमि में उस मस्तक ने अपने ओठ को दाँतों से दबा रखा था। वह आँधी के द्वारा गिराये हुए पके ताल-फल के समान पृथ्वी पर गिर पड़ा। तत्पश्चात वीर धृष्टद्युम्न ने अत्यन्त तीखे बाणों द्वारा उन सभी योद्धाओं को पुनः घायल करके विचित्र युद्ध करने वाले राधापुत्र कर्ण के धनुष को भल्लों से काट डाला। जैसे सिंह की पूँछ काट लेना अत्यन्त भयंकर कर्म है, उसे कोई महान सिंह नहीं सह सकता, उसी प्रकार कर्ण अपने धनुष का काटा जाना सहन न कर सका। क्रोध से उसकी आँखें लाल हो रही थीं। वह दूसरा धनुष हाथ में लेकर लंबी साँस खींचता हुआ महाबली धृष्टद्युम्न की ओर दौड़ा और उन पर बाण-समूहों की वर्षा करने लगा।

कर्ण को क्रोध में भरा हुआ देख उन छहों श्रेष्ठ रथी वीरों ने पांचाल-राजकुमार धृष्टद्युम्न को मार डालने की इच्छा से तुरंत ही घेर लिया। आपकी सेना के इन छः प्रमुख वीर योद्धाओं के सामने खड़े हुए धृष्टद्युम्न को हम लोग मृत्यु के मुख में पड़ा हुआ ही मानने लगे। इसी समय दशार्हकुलभूषण सात्यकि बाणों की वर्षा करते हुए वहाँ पराक्रमी धृष्टद्युम्न के पास आ पहुँचे। वहाँ आते हुए महाधनुर्धर युद्धदुर्मद सात्यकि को राधापुत्र कर्ण ने सीधे जाने वाले दस बाणों से बींध डाला। महाराज! तब सात्यकि ने भी समस्त वीरों के देखते-देखते कर्ण को दस बाणों से घायल कर दिया और कहा- ‘खड़े रहो, भाग न जाना’ राजन! उस समय बलवान सात्यकि और महामनस्वी कर्ण का वह संग्राम राजा बलि और इन्द्र के युद्ध सा प्रतीत होता था। अपने रथ की घर्घराहट से क्षत्रियों को भयभीत करते हुए क्षत्रियशिरोमणि सात्यकि ने कमललोचन कर्ण को अच्छी तरह घायल कर दिया। महाराज! बलवान सूतपुत्र कर्ण भी अपने धनुष की टंकार से पृथ्वी को कम्पित करता हुआ सा सात्यकि के साथ युद्ध करने लगा। कर्ण ने शिनिपौत्र सात्यकि को विपाठ, कर्णी, नाराच, वत्सदन्त, क्षुरप्र तथा सैकड़ों बाणों से क्षत-विक्षत कर दिया।

इसी प्रकार रणभूमि में वृष्णि वंश के श्रेष्ठ वीर सात्यकि भी युद्ध-तत्पर हो कर्ण पर बाणों की वर्षा कने लगे। उन दोनों का वह युद्ध समान रूप से चलने लगा। महाराज! आपके अन्य योद्धा तथा कर्ण का पुत्र कवचधारी वृषसेन- ये सब के सब चारों ओर से तीखे बाणों द्वारा सात्यकि को बींधने लगे। प्रभो! इससे कुपित हुए सात्यकि ने उन सब योद्धाओं तथा कर्ण के अस्त्रों का अस्त्रों द्वारा निवारण करके वृषसेन की छाती में गहरी चोट पहुँचायी। प्रजानाथ! सात्यकि के बाण से घायल हो बलवान वृषसेन धनुष छोड़कर मूर्च्छित हो रथ पर गिर पड़ा। तब महारथी वृषसेन को मारा गया मानकर कर्ण पुत्र शोक से संतप्त हो सात्यकि को पीड़ा देने लगा। कर्ण से पीड़ित होते हुए महारथी युयुधान बड़ी उतावली के साथ कर्ण को अपने बहुसंख्यक बाणों द्वारा बारंबार बींधने लगे। सात्वतवंशी सात्यकि ने कर्ण को दस और वृषसेन को सात बाणों से घायल करके उन दोनों के दस्ताने और धनुष काट दिये। तब उन दोनों ने दूसरे शत्रु-भयंकर धनुषों पर प्रत्यन्चा चढ़ाकर सब ओर से तीखे बाणों द्वारा युयुधान को बींधना आरम्भ किया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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