महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 156 श्लोक 21-43

षट्पंचाशदधिकशततम (156) अध्याय: द्रोण पर्व (घटोत्कचवध पर्व)

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महाभारत: द्रोणपर्व: षट्पंचाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 21-43 का हिन्दी अनुवाद

तदनन्तर दुर्योधन एक हजार रथों और दस हजार हाथियों द्वारा सोमदत्त को चारों ओर से घेरकर उनकी रक्षा करने लगा। समस्त शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ और वज्र के समान सुदृढ़ शरीर वाला आपका नवयुवक साला महाबाहु शकुनि भी अत्यन्त कुपित हो इन्द्र के समान पराक्रमी भाइयों तथा पुत्र-पौत्रों से घिरकर वहाँ आ पहुँचा। बुद्धिमान शकुनि के एक लाख से अधिक घुड़सवार महाधनुर्धर सोमदत्त की सब ओर से रक्षा करने लगे। बलवान सहायकों से सुरक्षित हो सोमदत्त ने अपने बाणों से सात्यकि को आच्छादित कर दिया। झुकी हुई गांठवाले बाणों से सात्यकि को आच्छादित होते देख क्रोध में भरे हुए धृष्‍टद्युम्‍न विशाल सेना साथ लेकर वहाँ आ पहुँचे। राजन! उस समय परस्पर प्रहार करने वाली सेनाओं का कोलाहल प्रचण्ड वायु से विक्षुब्ध हुए समुद्रों की गर्जना के समान प्रतीत होता था। सोमदत्त ने सात्यकि को नौ बाणों से बींध डाला। फिर सात्यकि ने भी कुरुश्रेष्‍ठ सोमदत्त को नौ बाणों से घायल कर दिया। सुदृढ़ धनुष धारण करने वाले बलवान सात्यकि के द्वारा समरभूमि में अत्यन्त घायल किये जाने पर सोमदत्त रथ की बैठक में जा बैठे और सुध-बुध खोकर मूर्च्छित हो गये। तब महारथी वीर सोमदत्त को मूर्च्छित हुआ देख सारथि बड़ी उतावली के साथ उन्हें रणभूमि से दूर हटा ले गया।

सोमदत्त को युयुधान के बाणों से पीड़ित एवं अचेत हुआ देख द्रोणाचार्य यदुवीर सात्यकि का वध करने की इच्छा से उनकी ओर दौड़ें। द्रोणाचार्य को आते देख युधिष्ठिर आदि पाण्डव वीर यदुकुल तिलक महामना सात्यकि की रक्षा के लिये उन्हें सब ओर से घेरकर खड़े हो गये। जैसे पूर्वकाल में त्रिलोकी पर विजय पाने की इच्छा से राजा बलि का देवताओं के साथ युद्ध हुआ था, उसी प्रकार द्रोणाचार्य का पाण्डवों के साथ घोर संग्राम आरम्भ हुआ। तत्पश्‍चात महातेजस्वी द्रोणाचार्य ने अपने बाणसमूह से पाण्डव सेना को आच्छादित कर दिया और युधिष्ठिर को बींध डाला। फिर महाबाहु द्रोण ने सात्यकि को दस, धृष्टद्युम्न को बीस, भीमसेन को नौ, नकुल को पांच, सहदेव को आठ, शिखण्डी को सौ, द्रौपदी-पुत्रों को पांच-पांच, मत्स्यराज विराट को आठ, द्रुपद को दस, युधामन्यु को तीन, उत्तमौजा को छः तथा अन्य सैनिकों को अन्यान्य बाणों से घायल करके युद्धस्थल में राजा युधिष्ठिर पर आक्रमण किया।

राजन! द्रोणाचार्य की मार खाकर पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर के सैनिक आर्तनाद करते हुए भय के मारे दसों दिशाओं में भाग गये। द्रोणाचार्य के द्वारा पाण्डव-सेना का संहार होता देख कुन्तीकुमार अर्जुन के हृदय में कुछ क्रोध हो आया। वे तुरंत ही आचार्य का सामना करने के लिये चल दिये। अर्जुन को युद्ध में द्रोणाचार्य पर धावा करते देख युधिष्ठिर की सेना पुनः वापस लौट आयी। राजन! तदनन्तर भरद्वाज नन्दन द्रोण का पाण्डवों के साथ पुनः युद्ध आरम्भ हुआ। आपके पुत्रों ने द्रोणाचार्य को सब ओर से घेर रखा था। जैसे आग रूई के ढेर को जला देती हैं, उसी प्रकार वे पाण्डव-सेना को तहस-नहस करने लगे। नरेश्रवर! प्रज्वलित अग्नि के समान कान्तिमान तथा निरन्तर बाणरूपी किरणों से युक्त सूर्य के समान अत्यन्त प्रकाशित होने वाले द्रोणाचार्य को धनुष को मण्डलाकार करके तपते हुए प्रभाकर के समान शत्रुओं को दग्ध करते देख पाण्डव-सेना में कोई वीर उन्हें रोक न सका।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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