महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 155 श्लोक 43-46

पंचपंचाशदधिकशततम (155) अध्याय: द्रोण पर्व (घटोत्कचवध पर्व)

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महाभारत: द्रोणपर्व: पंचपंचाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 43-46 का हिन्दी अनुवाद

तदनन्तर रात्रि के प्रथम प्रहर में जब कौरव सेना अत्यन्त भयभीत हो इधर-उधर भाग गयी, तब श्रेष्ठ राजाओं ने विकसित कमल के समान सुन्दर नेत्रों वाले महाबली भीमसेन की भूरि-भूरि प्रशंसा की और बलवान भीम ने राजा युधिष्ठिर का समादर किया। तत्पश्‍चात जैसे अन्धकासूर के मारे जाने पर देवताओं ने भगवान शंकर का स्तवन और पूजन किया था, उसी प्रकार नकुल, सहदेव, द्रुपद, विराट, केकयराजकुमार तथा युधिष्ठिर भी भीमसेन की विजय से बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने वृकोदर की बड़ी प्रंशसा की।

इसके बाद वरुण पुत्र के समान पराक्रमी आपके सभी पुत्र रोष में भरकर युद्ध की इच्छा से रथ, पैदल और हाथियों की सेना साथ ले महात्मा गुरु द्रोणाचार्य के साथ आये और वेगपूर्वक भीमसेन को सब ओर से घेर कर खड़े हो गये। यह देख नकुल, सहदेव, सैनिकों सहित द्रुपदपुत्र, युधिष्ठिर, द्रुपद, विराट, सात्यकि, घटोत्कच, जय, विजय, द्रुम, वृक तथा सृंजय योद्धाओं ने आपके पुत्रों को आगे बढ़ने से रोका। नृपश्रेष्ठ! फिर तो घने अन्धकार से आवृत महाभयंकर प्रदोषकाल में उन महामनस्वी वीरों का अत्यन्त दारुण, भयदायक तथा भेड़ियों, गीधों और कौवों को आनन्दित करने वाला अद्भुत युद्ध होने लगा।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व क अंतगर्त घटोत्कवधपर्व में रात्रियुद्ध के प्रसंग में भीमसेन को पराक्रमविषयक एक सौ पचनपनवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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