महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 83 श्लोक 33-52

त्रयशीतितम (83) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: त्रयशीतितम अध्याय: श्लोक 33-52 का हिन्दी अनुवाद

ऐसा कहते हुए वे बारंबार अत्यन्त प्रसन्न हो उसके रक्त का आस्वादन करने और उछलने-कूदने लगे। उस समय जिन्होंने भीमसेन की ओर देखा, वे भी भय से पीड़ित हो पृथ्वी पर गिर गये। जो लोग भयसे व्याकुल नहीं हुए, उनके हाथों से भी हथियार तो गिर ही पड़ा। वे भय से मन्द स्वर में सहायकों को पुकारने लगे और आँखे कुछ-कुछ बंद किये ही सब ओर देखने लगे। जिन लोगों ने भीमसेन को दुःशासन का रक्त पीते देखा, वे सभी भयभीत हो यह कहते हुए सब ओर भागने लगे कि यह मनुष्य नहीं राक्षस है!

भीमसेन के वैसा भयानक रूप बना लेने पर उनके द्वारा रक्त पीया जाना देखकर सब लोग भय से आतुर हो भीम को राक्षस बताते हुए चित्रसेन के साथ भाग चले। चित्रसेन को भागते देख राजकुमार युधामन्यु ने अपनी सेना के साथ उसका पीछा किया और निर्भय होकर शीघ्र छोडे़ हुए सात पैने बाणों द्वारा उसे घायल कर दिया। तब जिसका शरीर पैरों से कुचल गया हो, अतएव जो क्रोध जनित विष का वमन करना चाहता हो, उस जीभ लपलपानेवाले महान् सर्प के समान चित्रसेन ने पुनः लौटकर उस पांचाल राजकुमार को तीन और उसके सारथि को छः बाण मारे। तत्पश्चात् शुरवीर युधामन्यु ने धनुष को कानतक खींचकर ठीक से संधान करके छोडे़ हुए सुन्दर पंख और तीखी धारवाले सुनियन्त्रित बाणद्वारा चित्रसेन का मस्तक काट दिया। अपने भाई चित्रसेन के मारे जाने पर कर्ण क्रोध में भर गया और अपना पराक्रम दिखाता हुआ पाण्डवसेना को खदेड़ने लगा।

उस समय अमितबलशाली नकुल ने आगे आकर उसका सामना किया। इधर भीमसेन भी अमर्ष में भरे हुए दुःशासन का वहीं वध करके पुनः उसके खून से अंजलि भरकर भयंकर गर्जना करते और विश्वविख्यात वीरों के सुनते हुए इस प्रकार बोले-नराधम दुःशासन! यह देख, में तेरे गले का खून पी रहा हूँ। अब इस समय पुनः हर्ष में भरकर मुझे बैल-बैल कहकर पुकार तो सही। जो लोग उस दिन कौरव सभा में हमें बैल-बैल कहकर खुशी के मारे नाच उठते थे, उन सब को आज बारंबार बैल-बैल कहते हुए हम भी प्रसन्नतापूर्वक नृत्य कर रहे हैं। मुझे प्रमाणकोटितीर्थ में विष पिलाकर नदीं में डाल दिया गया, कालकूट नामक विष खिलाया गया, काले सर्पों से डसाया गया, लाक्षागृह में जलाने की चेष्टा की गयी, जूए के द्वारा हमारे राज्य का अपहरण किया गया और हम सब लोगों को वनवास दे दिया गया। द्रौपदी के केश खींचे गये, जो अत्यन्त दारुण कर्म था। संग्राम में हमपर बाणों तथा अन्य घातक अस्त्रों का प्रयोग किया गया।

राजा विराट के भवन में हमें जो महान् क्लेश उठाना पड़ा, वह तो सबसे विलक्षण है। शकुनि, दुर्योधन और कर्ण की सलाह से हमें जो-जो दुःख भोगने पड़े, उन सबकी जड तू ही था। पुत्रोंसहित धृतराष्ट्र की दुष्टता से हमें ये दुःख भोगने पड़े हैं। इन दुःखों को तो हम जानते हैं, किंतु हमें कभी सुख मिला हो, इसका स्मरण नहीं है। महाराज! ऐसी बात कहकर खून से भीगे और रक्त से लाल मूँह वाले, अत्यन्त क्रोधी, वेगशाली और भीमसेन युद्ध में विजय पाकर मुस्कराते हुए पुनः श्रीकृष्ण और अर्जुन से बोले-वीरों! दुःशासन के विषय में मेंने जो प्रतिज्ञा की थी, उसे आज यहाँ रणभूमि में सत्य कर दिखाया।यही दूसरे यज्ञपुत्र दुर्योधन को काटकर उसकी बलि दूंगा और समस्त कौरवों की आँखों के सामने उस दुरात्मा मस्तक को पैर से कुचलकर शांति प्राप्त करूंगा। ऐसा कहकर खून से भीगे शरीरवाले अत्यन्त बलशाली महामना भीम वृत्रासुर का वध करके गर्जनेवाले सहस्र नेत्रधारी इन्द्र के समान उच्चस्वर से गर्जन और सिंहनाद करने लगे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में दुःशासनवधविषयक तियासीवां अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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