महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 73 श्लोक 22-46

त्रिसप्ततितम (73) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: त्रिसप्ततितम अध्याय: श्लोक 22-46 का हिन्दी अनुवाद

यदि तुम रक्षक न होते तो व्यूहाकार में खड़ी हुई धृतराष्ट्रपुत्रों की प्रचण्ड एवं विशाल सेना को सामने देखकर कौन मनुष्य उस पर चढ़ाई कर सकता था? प्रभो! तुमसे सुरक्षित रहकर ही क्रोध भरे पाण्डव योद्धाओं ने धूल से आच्‍छादित और समुद्र के समान उमड़ी हुई कौरव सेना को छिन्न भिन्न करके मार डाला है। अभी सात दिन ही हुए हैं, अभिमन्यु ने मगध देश के राजा महाबली जयत्सेन को युद्ध में मार डाला था। तत्पश्चात भीमसेन ने राजा जयत्सेन के भयानक कर्म करने वाले दस हजार हाथियों को, जो उन्हें सब ओर से घेरकर खड़े थे, गदा के आघात से नष्ट कर दिया। तदनन्तर और भी बहुत से हाथी तथा सैकड़ों रथ उनके द्वारा बलपूर्वक नष्ट किये गये। पाण्डुनन्दन! पार्थ! इस प्रकार महाभयंकर युद्ध आरम्‍भ होने पर तुम्‍हारे और भीमसेन के सामने आकर बहुत से कौरव सैनिक घोडे़, रथ और हाथियों सहित यहाँ से यमलोक पधार गये। माननीय कुन्तीनन्दन! पाण्डव वीरों ने जब वहाँ सेना के प्रमुख भाग का विनाश कर डाला, तब भीष्म जी भयंकर बाण समूहों की वृष्टि करने लगे। वे उत्तम अस्त्रों के ज्ञाता तो थे ही, उन्होंने पाण्डव पक्ष के चेदि, काशी, पांचाल, करूष, मत्स्य और केकयदेशीय योद्धाओं को अपने बाणों से आच्‍छादित करके मौत के मुख में डाल दिया। उनके धनुष से छूटे हुए बाण शत्रुओं की काया को विदीर्ण कर देने वाले थे, उनमें सोने के पंख लगे थे और वे लक्ष्य की ओर सीधे पहुँचते थे। उन बाणों से सम्‍पूर्ण आकाश भर गया।

वे एक-एक मुट्ठी बाण से ही युद्धस्थल में एकत्र हुए लाखों महाबली पैदल मनुष्यों और हाथियों का संहार करके सहस्रों रथियों को मार सकते थे। भीष्म जी युद्धस्थल में दोषयुक्त आविद्ध आदि नौ गतियों को छोड़कर केवल दशवीं गति से बाण छोड़ते थे। वे बाण पाण्डव पक्ष के घोड़ों, रथों और हाथियों का संहार करने लगे। लगातार दस दिनों तक तुम्‍हारी सेना का विनाश करते हुए भीष्म जी ने असंख्‍य रथों की बैठकें सूनी कर दीं, बहुत से हाथी और घोड़े मार डाले। उन्होंने रणभूमि में भगवान रुद्र और विष्णु के समान अपना भयंकर रूप दिखाकर पाण्डव सेनाओं का बलपूर्वक विनाश कर डाला। मूर्ख दुर्योधन नौकारहित विपत्ति के सागर में डूब रहा था; अत: भीष्म जी उसका उद्धार करना चाहते थे, उन्होंने चेदि, पांचाल तथा केकय नरेशों का वध करते हुए, रथ, घोड़ों और रथियों से भरी हुई पाण्डव सेना को भस्म कर डाला। कोटि सहस्र पैदल तथा हाथों में उत्तम आयुध धारण किये हुए सृंजय सैनिक और दूसरे नरेश सूर्यदेव के समान ताप देते और समरांगण में विचरते हुए भीष्म की ओर आँख उठाकर देखने में भी समर्थ न हो सके।

उस समय संग्राम भूमि में विचरते तथा विजय से उल्‍लासित होते हुए भीष्म जी पर पाण्डव योद्धा अपनी सारी शक्ति लगाकर बड़े वेग से टूट पड़े। किंतु समरांगण में भीष्म जी अकेले ही पाण्डवों और सृंजयों को खदेड़कर युद्ध में अद्वितिय वीर के रूप में विख्‍यात हुए। अर्जुन! तुमसे सुरक्षित हुए शिखण्डी ने महान व्रतधारी पुरुष सिंह भीष्मजी पर चढ़ाई करके झुकी हुई गाँठ वाले बाणों द्वारा उन्हें मार गिराया, वे ही ये पितामह भीष्म तुम जैसे पुरुषसिंह को विपक्ष में पाकर धराशायी हो शरशय्या पर सो रहे है। ठीक उसी तरह, जैसे वृत्रासुर इन्द्र से टक्‍कर लेकर रणशय्या पर सो गया था। तत्पश्चात उग्रमूर्ति महारथी द्रोणाचार्य पाँच दिनों तक अभेद्यव्यूह का निर्माण, शत्रु सेना का विध्‍वंस, महारथियों का विनाश तथा समरांगण में जयद्रथ की रक्षा करने के अनन्तर रात्रि युद्ध में यमराज के समान प्रजा को दग्‍ध करने लगे। प्रतापी भारद्वाज नन्दन और द्रोणाचार्य अपने बाणों द्वारा शत्रु योद्धाओं को दग्ध करके धृष्टद्युम्न से भिड़कर परमगति को प्राप्‍त हो गये। उस समय यदि तुम युद्धस्थल में सूतपुत्र आदि रथियों को न रोकते तो रणभूमि में द्रोणाचार्य का नाश नहीं होता। धनंजय! तुमने दुर्योधन की सारी सेना को रोक रखा था; इसीलिये धृष्टद्युम्न संग्राम में द्रोणाचार्य का वध कर सके।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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