महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 56 श्लोक 46-70

षट्पंचाशत्तम (56) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: षट्पंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 46-70 का हिन्दी अनुवाद

नरेन्‍द्र! प्रतापी राधापुत्र कर्ण ने दूर से युद्ध करने वाले उन आठों वीरों को आठ पैने बाणों से घायल कर दिया। महाराज! तदनन्‍तर प्रतापी सूतपुत्र ने कई हजार युद्ध कुशल योद्धओं को मार डाला। राजन! तत्‍पश्चात क्रोध में भरे हुए कर्ण ने समरांगण में जिष्णु, जिष्णुकर्मा, देवापि, भद्र, दण्ड, चित्र, चित्रायुध, हरि, सिंह‍केतु, रोचमान तथा महारथी शलभ- इन चेदिदेशीय महारथियों का संहार कर डाला। इन वीरों के प्राण लेते समय रक्त से भीगे अंगों वाले सूतपुत्र कर्ण का शरीर प्राणियों का संहार करने वाले भगवान रुद्र के विशाल शरीर की भाँति देदीप्‍यमान हो रहा था। भारत! वहाँ कर्ण के बाणों से घायल हुए हाथी विशाल सेना को व्‍याकुल करते हुए भयभीत ही चारों ओर भागने लगे। कर्ण के बाणों से आहत होकर समरांगण में नाना प्रकार के आर्तनाद करते हुए वज्र के मारे हुए पर्वतों के समान धराशायी हो रहे थे। सूतपुत्र कर्ण के रथ के मार्ग में सब ओर गिरते हुए हाथियों, घोड़ों मनुष्‍यों और रथों के द्वारा वहाँ सारी पृथ्‍वी वहाँ सारी पृथ्‍वी पट गयी थी। कर्ण ने उस समय रणभूमि में जैसा पराक्रम किया था, वैसा न तो भीष्म, न द्रोणाचार्य और न आपके दूसरे कोई योद्धा ही कर सके थे।

महाराज! सूतपुत्र ने हाथियों, घोड़ों, रथों और पैदल मनुष्‍यों दल में घुसकर बड़ा भारी संहार मचा दिया था। जैसे सिंह मृगों के झुंड में निर्भय विचरता दिखायी देता है, उसी प्रकार कर्ण पांचालों की सेना में निर्भीक के समान विचरण करता था। जैसे भयभीत हुए मृगसमूहों को सिंह सब ओर खदेड़ता है, उसी प्रकार कर्ण पांचालों के रथसमूहों को भगा रहा था। जैसे मृग सिंह के मुख के समीप पहुँचकर जीवित नहीं बचते, उसी प्रकार पांचाल महारथी कर्ण के निकट पहुँचकर जीवित नहीं रह पाते थे। भरतनन्दन! जैसे जलती आग में पड़ जाने पर सभी मनुष्‍य दग्ध हो जाते है, उसी प्रकार सृंजय-सैनिक रणभूमि में से कर्णरुपी अग्नि से जलकर भस्‍म हो गये। भारत! कर्ण ने चेदि, केकय और पांचाल योद्धाओं में से बहुत से शूरसम्‍मत रथियों को नाम सुनाकर मार डाला। राजन! कर्ण का पराक्रम देखकर मेरे मन में यही निश्चय हुआ कि युद्धस्‍थल में एक पांचाल योद्धा सूतपुत्र के हाथ से जीवित नहीं छूट सकता; क्‍योंकि सूतपुत्र बारंबार युद्धस्‍थल में पांचालों का ही विनाश कर रहा था।

उस महासमर में कर्ण को पांचालों का संहार करते देख धर्मराज युधिष्ठिर ने अत्‍यन्‍त कुपित होकर उस पर धावा बोल दिया। आर्य! धृष्टद्युम्न, द्रौपदी के पुत्र तथा दूसरे सैकड़ों मनुष्‍य शत्रुनाशक राधापुत्र कर्ण को चारों ओर से घेरकर खड़े हो गये। शिखण्डी, सहदेव, नकुल, शतानीक, जनमेजय, सात्‍यकि तथा बहुत से प्रभद्रकगण ये सभी अमित तेजस्‍वी वीर युद्धस्‍थल में धृष्टद्युम्न के आगे होकर बाण बरसाने वाले कर्ण पर नाना प्रकार के अस्‍त्र-शस्‍त्रों का प्रहार करते हुए विचरने लगे। सूतपुत्र ने समरांगण में अकेला होने पर भी जैसे गरुड़ अनेक सर्पों पर एक साथ आक्रमण करते हैं, उसी प्रकार बहुसंख्यक, चेदि, पांचाल और पाण्‍डवों पर आक्रमण किया। प्रजानाथ! उन सबके साथ कर्ण का वैसा ही भयानक युद्ध हुआ, जैसा पूर्वकाल में देवताओं का दानवों के साथ हुआ था। जैसे एक ही सूर्य सम्‍पूर्ण अन्‍धकार-राशि को नष्‍ट कर देते हैं, उसी प्रकार एक ही कर्ण ने ढेर-के-ढेर बाण-वर्षा करने वाले उन समस्‍त महाधनुर्धरों को बिना किसी व्‍यग्रता के नष्‍ट कर दिया। जिस समय राधापुत्र कर्ण पाण्‍डवों के साथ उलझा हुआ था, उसी समय महाधनुर्धर भीमसेन क्रोध में भरकर यमदण्‍ड के समान भयंकर बाणों द्वारा बाह्लीक, केकय, मत्‍स्‍य, वसातीय, मद्र तथा सिंधुदेशीय सैनिकों का सब ओर से संहार कर रहे थे। वे युद्धभूमि में अकेले ही इन सबके साथ युद्ध करते हुए बड़ी शोभा पा रहे थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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