महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 41 श्लोक 39-58

एकचत्वारिंश (41) अध्याय: कर्ण पर्व

Prev.png

महाभारत: कर्ण पर्व: एकचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 39-58 का हिन्दी अनुवाद

कौआ विभिन्न उड़ानों द्वारा दर्शकों को आश्चर्यचकित करने की इच्छा से अपने कार्यों का बखान करता जा रहा था। उस समय कौए बड़े प्रसन्न हुए और जोर-जोर से कांव-कांव करने लगे। वे दो-दो घड़ी पर बारंबार उड़-उड़कर कहते- देखो, कौए की यह उड़ान, वह उड़ान। ऐसा कहकर वे हंसों का उपहास करते और उन्हें कटु वचन सुनाते थे। साथ ही कौए की विजय के लिये शुभाशंसा करते और भाँति-भाँति की बोली बोलते हुए वे कभी वृक्षों की शाखाओं से भूतल पर और कभी भूतल से वृक्षों की शाखाओं पर नीचे-ऊपर उड़ते रहते थे। आर्य! हंस ने एक ही मृदुल गति से उड़ना आरम्भ किया था; अतः दो घड़ी तक वह कौए से हारता-प्रतीत हुआ। तब कौओं ने हंसों का अपमान करके इस प्रकार कहा- 'वह जो हंस उड़ रहा था, वह तो इस प्रकार कौए से पिछड़ता जा रहा है!' उड़ने वाले हंस ने कौओं की बात सुनकर बड़े वेग वाले मकरालय समुद्र के ऊपर-ऊपर पश्चिम दिशा की ओर उड़ना आरम्भ किया। इधर कौआ थक गया था।

उसे कहीं आश्रय लेने के लिये द्वीप या वृक्ष नहीं दिखाई दे रहे थे; अतः उसके मन में भय समा गया और वह घबराकर अचेत सा हो उठा। कौआ सोचने लगा, मैं थक जाने पर इस जलराशि में कहाँ उतरूँगा? बहुत से जल-जन्तुओं का निवास स्थान समुद्र मेरे लिये असह्य है। असंख्य महाप्राणियों से उद्भासित होने वाला यह महासागर तो आकाश से भी बढ़कर है। सूतपुत्र कर्ण! समुद्र में विचरने वाले मनुष्य भी उसकी गम्भीरता के कारण दिशाओं द्वारा आवृत उसकी जलराशि की थाह नहीं जान पाते, फिर वह कौआ कुछ दूर तक उड़ने मात्र से उस समुद्र के जल समूहों का पार कैसे पा सकता था? उधर हंस दो घड़ी तक उड़कर इधर-उधर देखता हुआ कौए की प्रतीक्षा करने लगा कि यह कौआ भी उड़कर मेरे पास आ जाये। तदनन्तर उस समय अत्यन्त थका-मांदा कौआ हंस के समीप आया। हंस ने देखा, कौए की दशा बड़ी शोचनीय हो गयी है। अब वह पानी में डूबने ही वाला है। तब उसने सत्पुरुषों के व्रत का स्मरण करके उसके उद्धार की इच्छा मनद में लेकर इस प्रकार कहा। हंस बोला- 'काग! तू तो बार बार अपनी बहुत सी उड़ानों का बखान कर रहा था; परंतु उन उड़ानों का वर्णन करते समय उनमें से इस गोपनीय रहस्ययुक्त उड़ान की बात तो तूने नहीं बतायी थी। कौए! बता तो सही, तू इस समय जिस उड़ान से उड़ रहा है, उसका क्या नाम है? इस उड़ान में तो तू अपने दोनों पंखो और चोंच के द्वारा जल का बार-बार स्पर्श करने लगा है। वापस! बता, बता। इस समय तू कौन सी उड़ान में स्थित है। कौए! आ, शीघ्र आ। मैं अभी तेरी रक्षा करता हूँ।'

शल्य कहते हैं- दुष्टात्मा कर्ण! वह कौआ अत्यन्त पीड़ित हो जब अपनी दोनों पाँखों और चोंच से जल का स्पर्श करने लगा, उस अवस्था में हंस न उसे देखा। वह उड़ान के वेग से शिथिलांग हो गया था और जल का कहीं आर-पार न देखकर नीचे गिरता जा रहा था। उस समय उसने हंस से इस प्रकार कहा- 'भाई हंस! हम तो कौए हैं। व्यर्थ में काँव-काँव किया करते हैं। हम उड़ना क्या जानें? मैं अपने इन प्राणों के साथ तुम्हारी शरण में आया हूँ। तुम जल के किनारे तक पहुँचा दो।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

f=a”k

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः